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गुप्त धन
 


दूसरी शादी पर आमादा हो सकता है! जब कि उसकी सुन्दर और पतिप्राणास्त्री को, जो कि उसके लिए स्वर्ग की एक भेट थी, भगवान ने एक बार छीन लिया।

वक्त बीतता गया। फिर यार-दोस्तो के तकाजे शुरू हो गये। कहने लगे, जाने भी दो, औरत पैर की जूती है, जब एक फट गयी, दूसरी बदल ली। स्त्री का कितना भयानक अपमान है, यह कहकर मै उनका मुंह बन्द कर दिया करता था। जब हमारी सोसायटी जिसका इतना बड़ा नाम है, हिन्दू विधवा को दुबारा शादी कर लेने की इजाजत नहीं देती तो मुझको शोभा नहीं देता कि मैं दुबारा एक कुँवारी से शादी कर लूँ। जब तक यह कलक हमारी कौम से दूर नहीं हो जाता, मै हर्गिज, कुंवारी तो दूर की बात है, किसी विधवा से भी ब्याह न करूंगा। ख्याल आया, चलो नौकरी छोड़कर इसी बात का प्रचार करे। लेकिन मंच पर अपने दिल के खयालात जबान पर कैसे लाऊँगा। भावनाओं को व्यावहारिक रूप देने मे, चरित्र मजबूत बनाने मे, जो कहना उसे करके दिखाने मे, हममे कितनी कमी है, यह मुझे उस वक्त मालूम हुआ जब कि छ. माह बाद मैंने एक कुंवारी लड़की से शादी कर ली।

घर के लोग खुश हो रहे थे कि चलो किसी तरह माना। उधर उस दिन मेरी बिरादरी के दो-तीन पढ़े-लिखे रिश्तेदारों ने डॉट बतायी—तुम तो कहा करते थे मैं बेवा से ही शादी करूँगा, लम्बा-चौड़ा व्याख्यान दिया करते थे, अब वह तमाम बाते किधर गयी? तुमने तो एक उदाहरण भी न रखा जिस पर हम चल सकते।

मुझ पर जैसे घडो पानी फिर गया। आँखे खुल गयीं। जवानी के जोश में क्या कर गुजरा। पुरानी भावनाएं फिर उभर आयीं और आज भी मैं उन्ही विचारों में डूबा हुआ हूँ।

सोचा था नौकर लड़के को नहीं सम्हाल सकता, औरतें ही इस काम के लिए ठीक हैं। ब्याह कर लेने पर, जब औरत घर मे आयेगी तो रामसरूप को अपने पास बाहर रख सकूँगा और उसका खास खयाल रखूगा लेकिन वह सब कुछ गलत अक्षर की तरह मिट गया। रामसरूप को आज फिर वापस गाँव पिता जी के पास भेजने पर मजबूर हूँ। क्यों, यह किसी से छिपा नही। औरत का अपने सौतेले बेटे से प्यार करना एक असम्भव बात है! ब्याह के मौके पर सुना था लडकी बड़ी नेक है, स्वजनों का खास खयाल रखेगी और उसे अपने बेटे की तरह समझेगी