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तांगेवाले की बड़
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अब न पहले के-से मेहरबान रहे न पहले की-सी हालत । खुदा जाने शराफत कहाँ गायब हो गयी। मोटर के साथ हवा हुई जाती है । ऐ हुजूर, आप ही जैसे साहब लोग हम इक्केवालों की कद्र करते थे, हमसे भी इज्जत से पेश आते थे। अव वह यत है कि हम लोग छोटे आदमी है, हर वात पर गाली मिलती है, गुस्सा सहना पडता है। कल दो बाबू लोग जा रहे थे, मैने पूछा तोंगा. . .तो एक ने कहा नही, हमको जल्दी है। शायद यह मजाक होगा। आगे चलकर एक साहव पूछते है कि टैक्सी कहाँ मिलेगी ? अब कहिए, यह छोटा शहर है, हर जगह जल्द से जल्द हम लोग पहुंचा देते है। इस पर भी हमी बतलाएँ कि टैक्सी कहाँ मिलेगी। अन्धेर है अन्वेर। खयाल तो कीजिए, यह नन्ही-सी जान घोडी की, हम और हमारे बाल-बच्चे और चौदह आने घटा। हुजूर, चौदह आने मे तो घोड़ी को एक कमची भी लगाने को जी नहीं चाहता। हुजूर हमे तो कोई चौबीस घंटे के वास्ते मोल ले ले।

कोई-कोई साहब हमी से नियारियापन करते है। चालीस साल से हुजूर, यही काम कर रहा हूँ। सवारी को देखा और भाँप गये कि क्या चाहते है। पैसा मिला और हमारी घोड़ी के पर निकल आये। एक साहब ने बडे तूम तड़ाक के बाद घटों के हिसाब से तांगा तय किया और वह भी सरकारी रेट से कम। आप देखे कि चुगी ही ने रेट मुकर्रर करते वक़्त जान निकाल ली है लेकिन कुछ लोग बगैर तिलो के तेल निकालना चाहते है। खैर मैने भी बेकारी मे कम रेट ही मान लिया। फिर जनाब थोड़ी दूर चलकर हमारा तॉगा भी जनाजे की चाल चलते लगा। वह कह रहे है कि भाई जरा तेज चलो, मै कहता हूँ कि रोजे का दिन है, घोड़ी का दम न टूटे। तब वह फ़रमाते है, हमें क्या तुम्हारा ही घटा देर में होगा। सरकार, मुझे तो इसमे खुशी है कि आप ही सवार रहे और गुलाम आपको फिराता रहे।

लाट साहब के दफ्तर मे एक बड़े बाबू थे। कटरे में रहते थे। खुदा झूठ न बुलवाये उनकी कमर तीन गज से कम न होगी। उनको देखकर इक्के-तांगेवाले आगे हट जाते थे। कितने ही इक्के वह तोड चुके थे। इतने भारी होने पर भी इस सफ़ाई से कूदते थे कि खुद कभी चोट न खायी। यह गुलाम ही की हिम्मत थी कि उनको ले जाता था। खुदा उनको खुश रक्खे, मजदूरी भी अच्छी देते थे। एक बार मैं ईदू का इक्का लिये जा रहा था, बाबू मिल गये और कहा कि दफ्तर तक