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गुप्त धन
 

सईद—और मै बेगैरत हूँ?

मै—बेशक! बेगैरत ही नही, शोबदेबाज, मक्कार, पापी, सब कुछ। यह अल्फाज बहुत घिनावने है लेकिन मेरे गुस्से के इजहार के लिए काफ़ी नहीं।

मैं यह बाते कह ही रही थी कि यकायक सईद के लम्बे-तगडे, हट्टे-कट्टे नौकर ने मेरी दोनों बाँहें पकड ली और पलक मारते भर मे हसीना ने झूले की रस्सियां उतारकर मुझे बरामदे के एक लोहे के खम्भे से बाँध दिया।

इस वक्त मेरे दिल मे क्या खयाल आ रहे थे, यह याद नही पर मेरी आँखो के सामने अँधेरा छा गया था, ऐसा मालूम होता था कि यह तीनों इन्सान नही, यमदूत है। गुस्से की जगह दिल में एक डर समा गया था। इस वक्त अगर कोई गैबी ताकत मेरे बन्धनों को काट देती, मेरे हाथो में आबदार खजर दे देती तो भी मै जमीन पर बैठकर अपनी जिल्लत और बेकसी पर आँसू बहाने के सिवा और कुछ न कर सकती। मुझे खयाल आता था कि शायद खुदा की तरफ से मुझ पर यह कहर नाजिल हुआ है। शायद मेरी बेनमाजी और बेदीनी की यह सजा मिल रही है। मैं अपनी पिछली जिन्दगी पर निगाह डाल रही थी कि मुझसे कौन-सी गलती हुई है जिसकी यह सजा है। मुझे इसी हालत में छोडकर तीनो सूरते कमरे मे चली गयी। मैने समझा मेरी सजा खत्म हुई। लेकिन क्या यह सब मुझे यो ही बँधा रक्खेगे? लौडियों मुझे इस हालत मे देख लें तो क्या कहें? नहीं, अब मै इस घर में रहने के काबिल ही नहीं। मै सोच रही थी कि रस्सियों क्योंकर खोलू मगर अफसोस, मुझे न मालूम था कि अभी तक मेरी जो गति हुई है, वह आनेवाली बेरहमियों का सिर्फ बयाना है। मैं अब तक न जानती थी कि यह छोटा आदमी कितना बेरहम, कितना कातिल है। मैं अपने दिल से बहस कर रही थी कि अपनी इस जिल्लत का इलज़ाम मुझ पर कहाँ तक है। अगर मै हसीना की उन दिल जलानेवाली बातों का जवाब न देती तो क्या यह नौबत न आती? आती और जरूर आती। वह काली नागिन मुझे डसने का इरादा करके चली थी। इसीलिए उसने ऐसे दिल दुखानेवाले लहजे में बात ही शुरू की थी कि मैं गुस्से मे आकर उसको लान-तान करूँ और उसे मुझे जलील करने का बहाना मिल जाय।

पानी जोर से बरसने लगा था, बौछारों से मेरा सारा शरीर तर हो गया था। सामने गहरा अँधेरा था। मैं कान लगाये सुन रही थी कि अन्दर क्या मिसकौट हो रही है मगर मेह की सनसनाहट के कारण आवाजे साफ़ न सुनायी देती थी। इतने मे लालटेन फिर कमरे से बरामदे मे आयी और तीनों डरावनी सूरते फिर सामने