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नबी का नीति-निर्वाह
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घर न आता, हँसना-बोलना सब भूल गया। धन ही उसके जीवन का एक मात्र आधार था; उसके प्रणय-वचित हृदय को किसी विस्मृतिकारक वस्तु की चाह थी। नैराश्य और चिन्ता बहुधा शराब से शान्त होती है, प्रेम उन्माद से। अबुलआस को धनोन्माद हो गया। धन के आवरण मे छिपा हुआ वियोग-दुख था, माया के पर्दे मे छिपा हुआ प्रेम-वैराग्य।

जाडो के दिन थे। नाड़ियो में रुधिर जमा जाता था। अबुलआस मक्का से माल लादकर एक काफिले के साथ चला। रकफ़ों का एक दल भी साथ था। कुरैशियों ने मुसलमानो के कई काफ़िले लूट लिये थे। अबुलआस को सशय था कि मुसलमानो का आक्रमण होगा, इसलिए उन्होने मदीने की राह छोडकर एक दूसरा रास्ता अख्तियार किया। पर दुर्दैव, मुसलमानो को टोह मिल ही गयी। जैद ने सत्तर चुने हुए आदमियो के साथ काफिले पर धावा कर दिया। धन के भक्त धर्म के सेवको से क्या बाजी ले जाते। सत्तर ने सात सौ को मार भगाया। कुछ मरे, अधिकाश भागे, कुछ कैद हो गये। मुसलमानों को अतुल धन हाथ लगा। कैदी घाते मे मिले। अबुलआस फिर कैद हो गया।

कैदियों के भाग्य-निर्णय के लिए नीति के अनुसार पंचायत चुनी गयी।

जैनब को यह खबर मिली तो आशाएँ जाग उठी; आशा भरती नहीं केवल सो जाती है। पिंजरे में बन्द पक्षी की भॉति तड़फड़ाने लगी, पर क्या करे, किससे कहे, अबकी तो फ़दिये का भी कोई ठिकाना न था। या खुदा, क्या होगा!

पचो ने अबकी हजरत मुहम्मद ही को अपना प्रधान बनाया। हज़रत ने इनकार किया, पर अन्त में उनके आग्रह से विवश हो गये।

अबुलआस सिर झुकाये बैठे हुए थे। हजरत ने एक बार उन पर करुणासूचक दृष्टि डाली, फिर सिर झुका लिया।

पचायत शुरू हुई। अन्य कैदियो के घरों से मुक्तिधन आ गया था। वे मुक्त किये गये। अबुलआस के घर से मुक्तिधन न आया था। हजरत ने हुक्म दिया--इनका सारा माल और असबाब जब्त कर लिया जाय और ये उस वक्त तक बन्दी रहे जब तक इन्हें कोई छुडाने न आये। उनके अतिम शब्द ये थे--अबुलआस, इसलाम की रणनीति के अनुसार तुम गुलाम हो। तुम्हें बाज़ार मे बेचकर रुपया