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सैलानी बंदर


जीवनदास नाम का एक गरीब मदारी अपने बन्दर मन्नू को नचाकर अपनी जीविका चलाया करता था। वह और उसकी स्त्री बुधिया दोनो ही मन्नू को बहुत प्यार करते थे। उनके कोई सन्तान न थी, मन्नू ही उनके स्नेह और प्रेम का पात्र था। दोनो उसे अपने साथ खाना खिलाते और अपने साथ सुलाते थे। उनकी दृष्टि में मन्नू से अधिक प्रिय कोई वस्तु न थी। जीवनदास उसके लिए एक गेद लाया था। मन्नू आँगन में गेद खेला करता था। उसके भोजन करने को एक मिट्टी का प्याला था, ओढने को कम्बल का एक टुकड़ा, सोने को एक बोरिया, और उचकने के लिए छप्पर मे एक रस्सी। मन्नू इन वस्तुओं पर जान देता था। जब तक उसके प्याले में कोई चीज न रख दी जाय वह भोजन न करता था। अपना टाट और कम्बल का टुकड़ा उसे शाल और गद्दे से भी प्यारा था। उसके दिन बडे सुख से बीतते थे। वह प्रात काल रोटियाॅ खाकर मदारी के साथ तमाशा करने जाता था। वह नकले करने मे इतना निपुण था कि दर्शकवृद तमाशा देखकर मुग्ध हो जाते थे। लकड़ी हाथ में लेकर वृद्धों की भॉति चलता, आसन मारकर पूजा करता, तिलक-मुद्रा लगाता, फिर पोथी बगल मे दबाकर पाठ करने चलता। ढोल बजाकर गाने की नकल इतनी मनोहर थी कि दर्शक लोग लोट-पोट हो जाते थे। तमाशा खतम हो जाने पर वह सब को सलाम करता था, लोगों के पैर पकड़कर पैसे वसूल करता था। मन्नू का कटोरा पैसों से भर जाता था। इसके उपरान्त कोई मन्नू को एक अमरूद खिला देता, कोई उसके सामने मिठाई फेंक देता। लड़कों का तो उसे देखने से जी ही न भरता था। वे अपने-अपने घर से दौड़-दौडकर रोटियाॅ लाते और उसे खिलाते थे। मुहल्ले के लोगों के लिए भी मन्नू मनोरजन की एक सामग्री था। जब वह घर पर रहता तो एक न एक आदमी आकर उससे खेलता रहता। खोचेवाले फेरी करते हुए उसे कुछ न कुछ दे देते थे। जो बिना दिये निकल जाने की चेष्टा करता उससे भी मन्नू पैर पकड कर वसूल कर लिया करता था, क्योंकि घर पर वह खुला रहता था। मन्नू को अगर चिढ़ थी तो कुत्तों से। उसके मारे उधर से कोई कुत्ता न निकलने पाता था