८६० गीता-हृदय इस प्रकार सब कुछ कह चुकने के बाद इसका उपसहार करते हुए, जैसा कि कहा है, अगला श्लोक बताये देता है कि यह तो आश्चर्यकी कोई वात है नही। जमीन आसमान कही भी जो चीज होगी उसमे तीनो गुण होगे ही। इसीलिये केवल सजग होनेकी जरूरत है। नहीं तो इनके सिवाय औरोसे भी धोका हो सकता है। न तदस्ति पृथिव्या वा दिवि देवेषु वा पुन । सत्त्व प्रकृतिजर्मुक्त यदेभि स्यानिभिर्गुण ॥४०॥ भमडलमे या आकाग और स्वर्गके निवासी देवतागोतकमें भी ऐमा एक भी पदार्थ नहीं है जो प्रकृतिसे उत्पन्न इन तीनो गुणोमे रहित हो ।४०॥ पृथ्वीके किमी पदार्थका नाम न लेकर स्वर्गके देवतायोका नाम लेनेका प्रयोजन इतना ही है कि पार्थिव पदार्थोको तो सभी लोग त्रिगुणात्मक मानते-जानते है। अन्य स्वर्गीय पदार्थोको भी ऐसा शायद समझ सकते है । स्वर्गमे देवताअोके अलावे और भी पदार्थ यक्षादि होते ही है। साथ ही, दिव नो आकाशको भी कहते है और उसमे प्रेतादि भी रहते ही है। वे भी त्रिगुणात्मक हो सकते है । किन्तु देवतायोको दिव्य या अलौकिक खयाल करके कोई गायद त्रिगुण न माने, इमीलिये उनको खासतौरसे कह दिया । वजह भी दे दिया कि सभी तो प्रकृतिमे ही बने है। इसीलिये किमीपर भी भरोसा न करके अपनी बुद्धिकी निर्मलताका ही सहारा लेना होगा। इसी तरह सत्त्वका अर्थ पदार्थ है, न कि सत्त्व गुणमात्र । यह ठीक है कि सत्त्वगुण कही भी विशुद्ध नही है। उसमें भी रज और तमका मेल कभी कम, कभी ज्यादा रहता ही है। इसीसे सत्त्वका अर्थ पदार्थ हो भी गया। क्योकि किसीमे कम और किसीमे अधिक सत्त्व तो रहता ही है । आशय यही है कि खवरदार, विशुद्ध सत्त्व कही नहीं है। इसलिये सतर्क
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