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८५२ गीता-हृदय - कहा जाता है। रागयुक्त, फलेच्छुक, लोभी, हिंसामें लगा हुआ, नापीक और (कर्मके पूरे होने, न होनेमे) हर्ष और शोकाकुल कर्ता राजस है। बुद्धिको ठिकाने न रखनेवाला, गँवार, अँकडा हुआ, ठग, दूसरेकी हानि करनेवाला, आलसी, रोने-धोनेवाला और असावधान कर्ता तामस कहा जाता है।२६-२७।२८। बुद्धर्भेद धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविध शृणु । प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनजय ॥२६॥ हे धनजय, गुणोके भेदसे बुद्धि और घृतिके भी जो तीन प्रकार है उन्हें भी पूरा-पूरा अलग-अलग कहे देता हूँ, सुन लो ।२६। प्रवृत्ति च निवृत्तिं च कार्याकार्ये भयाभग्रे। बन्ध मोक्ष च या वेत्ति बुद्धि सा पार्थ सात्त्विकी ॥३०॥ यया धर्ममधर्म च कार्य चाकार्यमेव च। अयथावत्प्रजानाति बुद्धि सा पार्थ राजसी ॥३१॥ अधर्म धर्ममिति या मन्यते तमसावृता। सर्वार्थाविपरीताश्च बुद्धि सा पार्थ तामसी ॥३२॥ हे पार्थ, जो बुद्धि कर्त्तव्य-अकर्तव्य, हो सकने, न हो सकने वाली चीज, डर-निडरता, बन्धन और मोक्ष (इन सबो) को (बखूबी) जानती है वही सात्त्विक है। जिस बुद्धिसे धर्म-अधर्म तथा कार्य-अकार्यको ठीक- ठीक न जान सके वही राजस है । हे पार्थ, तमसे घिरी जो बुद्धि अधर्मको धर्म और सभी वानोको उलटे ही जाने वही तामसी है ।३०१३११३२। यहाँ पहले श्लोकमे जो प्रवृत्ति और निवृत्ति है उसीके अर्थमें शेष दो श्लोकोमे धर्म-अधर्म शब्द आये है । इसीलिये हमने प्रवृत्ति-निवृत्तिका अर्थ कर्तव्य-अकर्त्तव्य किया है। धर्म-अधर्मका भी वही अर्थ है। कार्य- अकार्यके मानी यह है कि पहलेसे ही अच्छी तरह देख लेना कि यह काम