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सोलहवां अध्याय ८४१ । जन्तु कामका अर्थ ८ निरन्तर पदाथाक समिश्रणसे ही बनता है। इसमे जरा भी विराम नही है। असुर लोग यदि यह भी कहने लगे कि दो पदार्थोके सयोगसे कुछ भी नही बना है, जब कि हमेशा सयोगसे ही असख्य पदार्थ और जीव- पैदा हो रहे है, तो यह कितनी नादानी होगी ? "कामहैतुकम्"का भी मेल यहाँ बिना परस्पर सयोगके होई नही सकता है प्रेरणा या इच्छा, चेतन प्राणधारियोकी ही तरह जडोमे भी प्रेरणा होती ही है और पदार्थोका परस्पर समिश्रण होके नया पदार्थ तैयार हो जाता है। यहांतक कि परमाणुवादी दार्शनिकोने सष्टिके आरभमे परमा- णुअोमे ही परस्पर प्रेरणा मानके उनमें सयोग माना है। यह कहना भी कि 'असत्यम्' आदि पूर्वके तीन शब्दोकी ही तरह नहीके ही अर्थमे अपरस्पर शब्दमे पहलेका अकार है, ठीक नहीं है। उत्तरार्द्धमे यह बात नहीं है, किन्तु पूर्वार्द्धम ही। उत्तरार्द्धमे तो 'कामहेतुकम्' आदि कई शब्द है। मगर किसीके साथ ऐसा अकार जुटा नहीं है । तब उन्हीके साथी अपरस्परमे ही क्यो माना जाय ? और निकटके साथियोको छोड़ दूरवत्तियोसे उसकी मिलान भी क्यो की जाय ? एतां दृष्टिमवष्टभ्य नष्टात्मानोऽल्पबुद्धयः । प्रभवन्त्युग्रकर्माणः क्षयाय जगतोऽहिताः॥६॥ जिनकी आत्मा पतित हो चुकी है ऐसे नासमझ लोग इसी विचारको लेके जगत्के अहित बन जाते और उसके सत्यानाशके लिये (घोरसे) घोर कर्मतक कर डालते है ।। काममाश्रित्य दुष्पूरं दंभमानमदान्विताः। मोहाद्गृहीत्वाऽसद्ग्राहान् प्रवर्तन्तेऽशुचिनताः ॥१०॥ कभी पूरी न हो सकनेवाली आकाक्षाये लिये, दिखावटी बात, तथा नशेमे चूर और नापाक कामोमे ही लगे (ये लोग) भूलसे गलत बातोके हठमे आके काम करते रहते है ।१०। घमड