तेरहवाँ अध्याय यह बात बारहवें अध्यायके शुरुमे ही कह चुके है कि वह समूचा अध्याय ग्यारहवेके वाद प्रसगवश आ गया है । इसीलिये उसे पूरा करने- के बाद पुनरपि मुख्य विषय ज्ञानविज्ञान एव उसके पदार्थोंपर आ जाना जरूरी है-उन्ही पदार्थोंपर जिनका सविस्तर निरूपण दसवें तथा प्रदर्शन ग्यारहवे अध्यायमें हुआ है। वहाँ आत्मासे ही शुरू करके प्राण, चेतना, मन आदि सभी पदार्थोके साथ ही नदी, पहाड आदि मुख्य- मुख्य पदार्थोका वर्णन आया है। उन्हीमेसे कुछ प्रमुख पदार्थोके साथ ही कितनी ही रहस्यमय वस्तुप्रोको ग्यारहवेमे दिखाया भी गया है इस तरह दसवें और ग्यारहवेका पूरा मेल है। बल्कि यो कह सकते है कि दोनो मिलके वस्तुत एक ही अध्याय है । इसीसे विभूति और योग दोनोका ही उल्लेख दसवेंमें एक ही साथ किया भी है। इसे दो भागोमे वाँटा तो गया है सिर्फ आसानीके लिये । जिससे दसवेमे मौखिक विवरण और ग्यारहवेंमें उसीका प्रत्यक्ष प्रयोग होनेसे समझनेमें आसानी हो। यही वजह है कि तेरहवें अध्यायका श्रीगणेश दरअसल विभूतियोसे ही शुरू होता है । यही उचित भी है। ग्यारहवेमे जब उन्ही विभूतियोका प्रदर्शन है तव तो मौखिक विचार या विवेचन-विश्लेषणके लिये विभू- तियोको ही लिया जाना चाहिये। यह तो पहले ही कई बार कह चुके है कि मननका काम चालू रहना ही चाहिये । यही कारण है कि ग्यारहवेके प्रयोगके बाद भी शेष अध्यायोमें वह चालू है। तेरहवेंमें भी वही शुरू होके आगे बढता है। यही यह भी जान लेनेकी चीज है कि तेरहवें तथा चौदहवें अध्यायमें
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