७६० गीता-हृदय - मेरा यह ऐसा घोर रूप देखके तुम्हें (अव) व्यथा मत हो और घवराहट या किंकर्तव्यविमूढता भी मत हो। (किन्तु) निर्भय होके खुशी-खुशी तुम पुनरपि मेरे उसी रूपको यह अच्छी तरह देख लो।४६॥ इस श्लोकसे और भी साफ हो जाता है कि कृष्णने असली पुराने नररूपको ही फिरसे बना लिया था। क्योकि पुनरपि-फिर भी- उसी रूपको देख लो, ऐसा कहते है। इसका तो आशय यही है न, कि जिसे पहले देखा था उसीको फिर देखो? दुवारा देखनेका और मतलब होगा भी क्या ? जो चतुर्भुज रूप सामने ही है उसीको पुन देखना क्या ? इसीलिये जब फिर मानव रूप बनाया है तो कहते है यह अच्छी तरह देस लो-'इद प्रपश्य'। इतना कहना था कि फौरन वही रूप नजर आ गया। ठीक यही वात- सजय उवाच इत्यर्जुनं वासुदेवस्तथोक्त्वा स्वकं रूप दर्शयामास भूयः । आश्वासयामास च भीतमेन भूत्वा पुनः सौम्यवपुर्महात्मा ॥५०॥ सजय कहने लगा (कि), कृष्णने अर्जुनसे ऐसा कहके (फौरन ही) अपना रूप फिर दिखा दिया और (इस तरह) सीधासादा स्वम्पवान बनके महात्मा कृष्णने उस डरे हुए अर्जुनको पुनरपि आश्वासन दिया ।५० अर्जुन उवाच दृष्ट्वेदं मानुष रूपं तव सौम्य जनार्दन । इदानीमस्मि संवृत्त सचेत. प्रकृति गतः ॥५१॥ (इसपर फौरन ही) अर्जुनने कहा (कि) हे जनार्दन, आपका यह सौम्य-सीवासादा-मानव रूप देखके मुझे अभी होश हुआ मिजाज भी ठीक हुअा है ।५१॥ है और
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