७५८ गीता-हृदय (अभी) जो आप मुकुट (एव) गदा लिये (तथा) चक्रधारी व है (उसकी जगह) मै आपको पहले हीकी तरह देखना चाहता हूँ। चतुर्भुज, हे स्वामिन्, हे सहस्रवाहु, हे विश्वमूत्ति, (आप) वही (पुराना रूप बन जाइये ।४६। इन दो श्लोकोके पदविन्यासको देखके और उसपर पूरा गौर करके बहुतेरे टीकाकार धोकेमे पड गये है । फलत उनने यह अर्थ कर या है कि आप किरीट, गदा और चक्र लिये चतुर्भुज रूप वन जाइय, यही अर्जुन चाहता है। परन्तु आगे जब कृष्णने अपना विराट रूप हटाके अर्जुन की इच्छा पूर्ण कर दी है, तो ५१वें श्लोकमें अर्जुन जो यह कहता है कि आपका सीधा-सादा मनुष्य रूप देखके अव कही मुझे होश हुआ है और मेरा मिजाज ठीक हुआ है, वह कैसे सगत होगा? चतुर्भुज रूप तो मनुष्यका था नही और न चक्रधारी ही। किसने कहाँ कहा कि किरीट और गदाधारी रूप आदमीका होता है और कृष्णका भी वही रूप घा' कहा जाता है कि जन्मके समय ही उनने ऐसा रूप देवकी-वसुदेवको दिखाया था। मगर उसे फौरन हटाना पडा । यही नही, "किरीटिन गदिन" (११।१७) आदिसे तो स्पष्ट ही है कि विराट रूप ही ऐसा था। फिर अर्जुन उसे ही कायम रखनेको कैसे कहता ? उसे ही देखके तो उसके देवता कूच कर गये थे न ? और जो रूप सामने ही था उसे 'वह' या 'उसी तरह का कहना कैसे उचित था ? उसे तो ४७वेमें ठीक ही यह -इदम्-कहा है । 'यह'के मानी ही है मौजद या हाजिर । 'वह'-तेनैव, तदेव-और 'उसी तरह-तथैव -तो सामनेकी चीजको न कहके परोक्ष या दूरकी चीजको ही कहते है । और सच कहिये तो कृष्णका सीधासादा अादमीवाला रूप ही उस वक्त सामने न था। अर्जुन उसे ही देवनेका परीगान भी था। इमीलिये हमने अर्थ किया है कि जो अभी किरीट, गदा, चक्रको धारम
पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/७३८
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।