पाठवां अध्याय ६८३ आगेके तीन श्लोक करते है। ब्रह्माको ही हिरण्यगर्भ और प्रजापति भी कहते है। यहाँ अव्यक्त शब्द आया है, जो ब्रह्माकी ही नीदकी अवस्थाके अर्थमें है--अर्थात् जब ब्रह्मा कुछ करते दीखते नही। जो लोग अव्यक्तका यहाँ प्रकृति या प्रधान अर्थ करते है वह भूल जाते है कि रोज-रोजके प्रलयमे आकाशादि महाभूत, महान् तथा अहकार तो रहते ही है । महान् इसी ब्रह्माका ही दूसरा नाम है । अव्यक्तका अर्थ है जो दीखे नही। इस तरह अदृश्य ब्रह्माकी वह निद्रावस्था, प्रधान या प्रकृति और स्वय अविनाशी ब्रह्म तीनो ही अव्यक्त कहे जाते है। आगेके श्लोक यह बात स्पष्ट दिखाते है कि ब्रह्माका तो यह टकसाल ही है दिन भर कुम्हारके बर्तनोकी तरह सृष्टि बनाना और रातमें उसका खात्मा हो जाने पर पुन प्रात वही काम करना । ब्रह्माके दिनरात बडे है यह भी बताया है । यह ठीक है कि यहाँ ब्रह्माकी मृत्युकी बात नही कही गई है और न ब्रह्मलोकसे लौटनेकी ही। मगर जब उनकी भी दिनरात है तो इसका अभिप्राय अर्थत वही है । आखिर दिनरातका तो काम ही है आयुका हिसाब लगाना-बताना, और जब आयु पूरी होगी तो ब्रह्मलोकसे हटना तो होगा ही। यह हटना ही हुआ वहाँसे लौटना । क्योकि ब्रह्माको फिर शरीर नहीं मिलता। आयुके अन्तमें ज्ञानके द्वारा वह मुक्त हो जाते है और उन्हीके साथ दूसरे भी, जो वहाँ रहते है। यह बात आगे “यत्रकालेत्वनावृत्ति" (८।२३-२६) आदि चार श्लोकोमें लिखी है । फिर नये ब्रह्मा आते और नया कारबार चलता है । ब्रह्माकी आयु पूरा होनेको महाप्रलय और रोज रोज रातमे उनके सोनेको खड प्रलय कहते है। कहा जाता है, इस तरह पूरे सौ साल तक ब्रह्मा भी कायम रहते है । तब कही जाके मुक्त होते है। इस प्रकार ब्रह्मलोकमे जाने पर तत्काल मुक्ति न होके देरसे होती है। इस देरके करते ही उसे लौटना मानते है । लौटनेमे भी तो आखिर देर ही होती है न ?
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