सातवाँ अध्याय ६५७ पाये जाते है सबके सब मुझ परमात्मासे ही बने है। (लेकिन याद रहे वि.) में उनमे नहीं हूँ, (किन्तु) वही मुझमे है ।१२। ऊपरके इन पाँच ग्लोकोमे इस सृष्टिके मूलकारणका जो उल्लेन पाया है वह कई दृष्टियोंसे महत्त्वपूर्ण है । यह ठीक है कि सृप्टिके कुछी पदार्थोको चुनके उन्हीके बारेमे चार श्लोकोमे कह दिया है कि उनकी यात्मा, उनका हीर, उनकी असलियत में ही हूँ, आत्मा ही है, परमात्मा ही है। किन्तु पाँचवें श्लोकमे तो सात्त्विक, राजस, तामस शब्दोमे अंगुण्य या सभी पदार्थोको सामान्य स्पसे लेकर वही बात कह दी गई है । कुछ चुने चुनाये पदार्थोके वारेमे ऐसा करनेका एक खास प्रयोजन अन्तमे इसी अध्यायमे कहेगे। यहाँ यही देखना है कि उनमे भी पांच भूतोमे पृथ्वी, जल, तेज और आकाश इन चारको ही पृथक्-पृथक् गिनाया है और वायुको इम स्पर्म छोड दिया है । इन चारोके जो असली गुण या परिचायक है, उनकी जो विशेषताये (characteristics) है, और इसीलिये जिन्हें उनकी यात्मा कह सकते है, उन्हीको परमात्माका रूप बना दिया है। सचमुच ही यदि भूमिसे गन्धको, आकागसे शब्दको, अग्निसे तेजको और जनगे रमको निकाल ले तो उन पदार्योका अपना क्या रह जायगा उन्हें फिर भी पृथ्वी, जल प्रादिके नाममे कोई एकारेगा भी क्या तव तो वे लापता हीहोगे। उनके अस्तित्वका कोई भी प्रमाण रही न जायगा। भमिमे दागनिवाने गन्ध ही सब कुछ माना है । जहां वह न भी मालम हो यहां भी रहताती है। लोहे, पत्थर वगैरहमे मालम न होने पर भी उनके भरमा गट ही मालूम होता है। ग गया वायु । अगलमे यदि देखा जाय तो इन भौतिक नृष्टिके मतग जो पांच मत है उनमें पायका ही महत्त्व नबने ज्यादा है। अन्य पक्षाशी बिना नो नभी पदार्थ बह देर टिक भी सकते हैं। मगर बाके चिनामा मिनट भी टिना सामनव को जाता है। उसे प्राण भी सनीलिये ? ?
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