छठा अध्याय ६४३ कोई बुरी गति होती है। क्योकि, ओ मेरे प्यारे, कल्याणके मार्ग पर चलनेवाले किसीकी भी दुर्गति हो नहीं सकती।४०। प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः । शुचीना श्रीमता गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥४॥ योगभ्रष्ट-समाधिकी सिद्धि न प्राप्त कर सकनेवाला-(मनुष्य) उत्तम कर्म करनेवालोके लोकोमे जाके (और वहाँ) बहुत वर्ष-मुद्दत तक-रहके पवित्राचरणवाले श्रीमानोके घर जनमता है ।४१॥ अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् । एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् ॥४२॥ या नहीं तो योगियोके ही समाजमे जा पहुँचता है । असलमे इस प्रकारका जो जन्म है वह ससारमे अत्यत दुर्लभ है ।४२। यहाँ श्रीमानोके घरमें जन्म लेनेकी बात कहके फिर योगियोके कुलमे जानेकी बात कही गई है । ऐसे जन्मको बहुत ही दुर्लभ भी कहा है । प्रश्न यह होता है कि श्रीमानके घर और योगीके कुलमे क्या फर्क कुछ लोगोने उत्तर दिया है कि धनियोके घरमे सम्पत्तिके चलते योगाभ्यासमे वाधा होती है। वहाँ पाराममे ही फंसनेका मौका ज्यादा रहता है। विपरीत इसके योगी कहनेका अर्थ गरीवके घरमें जन्म लेना हैं । फलत वहाँ अभ्यासका मौका पूरा रहता है । इसीलिये यह जन्म पहलेकी अपेक्षा दुर्लभ है । यह बात इस चीज पर निर्भर है कि मरनेसे पूर्व उसकी क्या दगा थी । यदि अभ्यासमे ज्यादा प्रगति कर चुका था, तब तो उसीकी चिन्ता करते-करते ही शरीरान्त होने से “य य वापि" (18)के अनुसार खामखा योगियोके ही घर जनमेगा । योगी से मतलब जनकादि जैसे गृहत्यसे ही है। अन्तर यही है कि जनक थे श्रीमान और यहां वह बात न होगी । मगर प्रश्न होता है कि मन्दालता तो राजाकी पत्नी थी। फिर भी उसके बच्चे आत्मज्ञानी ही होते थे। बचपनसे वह
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