३४ गीता-हृदय खराव कामोको छोड दूसरोके अच्योकी पोर झपट पडना भी ठीक नहीं । 'अपने'का अर्थ है हरेकके लिये जो निर्धारित या तयगुदा (assigned) पूजाको ऐसा रूप देनेमे एक बहुत ही बडी न्यूबी और भी है। ममी चाहते है कि हरेक काम अच्छी तरह पूरा हो और मुन्दरताफे माय किया जाय । हरेक चीजकी सबसे बडी मूवी है उनकी पूर्णता । यदि ग्रपूरापन किसी भी काममे रहने न पाये तो मनार मगलमय वनके ही रहे । मगर यही बात नहीं हो पाती और लापर्वाही, अन्यमनस्कता प्रादि कितनी ही चीजे इसकी वजह है। लोग अकरार यह भी समझते है, नामकर जब कोई कठिन, परन्तु अप्रिय, काम उन्हें गापा जाय, कि "गले पडी, बजाये फुर्सत ।" इसीलिये जैसे-तैसे उमे कर-करके अपना पिंउ छुडाना चाहते है । इमलिये जरुरत है इस बातको कि लोगो कामके लिये अनु- राग पैदा किया जाय, उनमे उमकी धुन लाई जाय और ऐमा किया जाय कि कामके लिये उनमे आग पैदा हो । यही वात इम पूजावाली प्रक्रियासे हो जाती है। जब लोग समझने लगते है कि हम जो कुछ भी करते है वह भगवानको पूजा ही है तो सामखा मनोयोगपूर्वक करना चाहते है । दिलमें यह खयाल हो पाता है कि पूजामे कोई कोरफमर न रह जाय । इसलिये धुन और लगनके साथ सच्चे प्रेमसे अपने-अपने काम न निर्फ करते है, बल्कि उन्हें पूर्ण बनानेके लिये मरतोड परिश्रम करते है । जव आमतौरसे किसी भी बडेके लिये तैयार की गई भेटको सुन्दरने सुन्दर, बनानेकी कोशिश कीजाती है तो फिर वडोके भी बडे-सबसे बडे-के लिये होनेवाली हमारे कामोकी भेट क्यो न सर्वात्मना सुन्दर बनाई जाय इसमें बाहरी खर्चवर्च और परीशानीकी भी बात नहीं है। यहां तो केवल मनोयोगका प्रश्न है । इस प्रकार सभी काम पूर्ण होगे और ससार सुखमय होगा। ?
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