४४६ गीता-हृदय कि वह "तत्रकापरिदेवना" गीताके अगले श्लोकमें भी है। हर्बर्ट स्पेन्सर (Herbert Spencer) नामक पश्चिमी दार्शनिकने अपनी पुस्तक "मूल सिद्धान्त" (First Principles) मे यही बात यो लिखी है कि यदि किसी पदार्थका पूरा परिचय प्राप्त किया जाय तो पता लगेगा किसी अदृश्य दशासे निकलके कुछ दिनो वाद फिर उसी दशामे THAT "An entire history of anything must include its appearance out of the imperceptible and its disappearance into the imperceptible" (page 253) यही बात स्वय कृष्ण इस तरह कहते हैं,- अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत । अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ॥२८॥ हे भारत, सभी भौतिक पदार्थ आरम्भमे-पहले-अव्यक्त ही होते है, अदृश्य ही रहते है, बीचमे व्यक्त और दृश्य होते है और अन्तमे फिर खामखा अदृश्य होई जाते है। तव इसमे चिन्ता क्या १२८॥ इसपर अब एक ही बात उठती है और वह यह है कि---कहना- सुनना और तर्क-युक्ति तो यह सब कुछ ठीक है और बात भी दरहकीकत, यही है। मगर दिक्कत यही है कि हमे ऐसी मालूम होती नही । अगर हमारे नित्यके अनुभवमें यह चीज आ जाय तभी न हम समझे कि दुरुस्त है ? नही तो जगलमें पका फल हमारे किस कामका उसतक हमारी पहुँच हो तभी न हमारी भूख बुझे । ये सभी बातें तो सपनेके साम्राज्य या बच्चोके खिलवाडकी मिठाई जैसी ही है। इसीलिये इनसे असली काम तो होता नही, पेट तो भरता नही और यही है ठोस चीज । निरी वातोसे तो कुछ होता जाता नही । और नही तो कमसे कम पढे-लिखोको तो इन बातोका अनुभव हो । नही तो कैसे जाने कि यह चीज सही है, सत्य हैं ? वडे बूढे बताये तो भी ?
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