२२ गीता-हृदय भो जरा और ार । इसी प्रकार नीचे पीर ार हजारी होने है, वात अमल यह है कि महात्मापनके लिये उात जिन नागेका मेल जरी है उनमे यदि तान या दोका ही मेल हो सका, या नारोगा मेन ना पून-पूरा न हो सका और यही बात तान और दाफे मेलम ना दुनावे लाग महात्मा तो हो सकते नहीं। वे तो नोचं जा पटे। मगर उमा हिगवरे उनका पतन कम या बेग माना जायगा। मेनमें जितना ज्यादा कमी होगी पतन उतना ही अधिक होगा। विपत उमो मेल चितना हा अधिक होगा उतना ही वे अपक्षाकृत ऊरर या ऊवे माने जायेंगे । संन्यास और लोकसंग्रह कर्तव्यबुद्विमे या लोक मग्रहार्थ कर्म करनेवाले महापुरुषोके ही प्रसगसे गोताको एक और बात भा जानने योग्य है। ममदगंन या ब्रह्मा- निष्ठाको हालतमें महान् पुरुषोकी दो गतियो हो गयतो है-ऐन पुरुष दो प्रकारके हो सकते है। एक तो ऐमें जिनकी माननिक दगा बहुत ही ऊँचा हो, अत्यन्त ऊँची हो । वह ऐसी दशाम हो कि उनकी वृत्तियां, उनके सयाल नीचे उतरते ही न हो, उतर सकते ही न हो। आमतौरमे ऐसे लोग प्रात्मानन्दमे मदा मग्न रहते है। इन्हीको कहीं-कही मस्तराम भी कहा है । उनके लिये इस दुनियाको मारी बाते वैसी ही है जैनो भादो- को अंधेरी रातमे पड़ी चीजे। उन चीजोको कोई देश ही नहीं गकता। ऐसे महानुभाव भो सासारिक पदार्थों और गति विधियों को कभी देख सकते नहीं । इन चीजो का यथार्थ ज्ञान उन्हें कभी होता ही नहीं। अंधेरे को चीजको तो टो-टाके जान भो सकते है। मगर इनके लिये दुनियवी पदार्थ सर्वथा अज्ञेय है । इनके साथ उनका निकटवर्ती सम्बन्ध कभी होई नही सकता, हालांकि ये पदार्थ पीरो के देसने में चारो ओर पडे मालूम होते हैं। जैसे पानी के भीतर हो पैदा हुना और पड़ा -
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