४०४ गीता-हृदय . कुन्तीके पुत्र राजा युधिष्ठिरने अनन्तविजय, और नकुल एव सहदेवने (क्रमश ) सुघोष तथा मणिपुष्पक (नामके शख वजाये)।१६। काश्यश्च परमेष्वास शिखडी च महारथः । धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजित.॥१७॥ महाधनुर्धारी काशिराज, महारथी शिखडी, धृष्टद्युम्न, विराट, अजेय सात्यकि-१७॥ द्रुपदो दौपदेयाश्च सर्वश. पृथिवीपते । सौभद्रश्च महाबाहुः शखान्दध्मः पृथक् पृथक् ॥१८॥ द्रुपद, द्रौपदीके सभी बेटे और लम्बी बाहोवाले अभिमन्यु इन सबने हे पृथिवीराज (धृतराष्ट्र), अलग-अलग शख फूंके ।१८। स घोषो धार्तराष्ट्राणा हृदयानि व्यदारयत्। नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलो व्यनुनादयन् ॥१६॥ आकाश और जमीनको वार-बार गुजा देनेवाले उस घोर शब्दने दुर्योधनके पक्षवालोका हृदय चीर दिया ।१९। अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्कपिध्वज. । प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाडव ॥२०॥ उसके बाद दुर्योधनके पक्षवालोको बाकायदा तैयार देखके (और यह जानके कि अब) अस्त्र-शस्त्र छूटने ही वाले है, महावीरकी चिह्नयुक्त ध्वजावाले अर्जुनने,-२० अर्जुन उवाच हषीकेश तदा वाक्यमिदमाह महीपते । सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापय मेऽच्युत ॥२१॥ हे महीपति, कृष्णसे यह बात कही कि अच्युत, दोनो फौजोके (ठीक) बीचमें मेरा रथ खडा कर दीजिये ।२११
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