४०२ गीता-हृदय धृष्टकेतु, चेकितान, वीर्यवान् काशिराज, कुन्तिभोज पुरुजित्, नरश्रेष्ठ शैव्य-५॥ युधामन्युश्च विक्रान्त उत्तमौजाश्च वीर्यवान् । सौभद्रो द्रौपदेयाश्च सर्व एव महारथाः ॥६॥ पराक्रमी युधामन्यु, वीर्यवान् उत्तमौजा, अभिमन्यु और द्रौपदीके बेटे-ये सबके सब महारथी है ।६। अस्माकं तु विशिष्टा ये तान्निबोध द्विजोत्तम । नायका मम सैन्यस्य सज्ञार्थं तान्ब्रवीमि ते ॥७॥ द्विजवर, हमारे जो चुने-चुनाये लोग है उन्हें भी (अब) गौरसे सुनिये । मेरी फौजके जो सचालक है उन्हे आपकी जानकारीके लिये बताता हूँ ॥७॥ भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिजयः। अश्वत्थामा विकर्णश्च सौमदत्तिस्तथैव च ॥ । (वे है), आप, भीष्म, कर्ण, युद्धविजयी कृपाचार्य, अश्वत्थामा, विकर्ण और भूरिश्रवा ।। अन्ये च बहवः शूरा मदर्थे त्यक्तजीविताः । नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः ॥६॥ दूसरे भी बहुतसे वीर है जिनने मेरे लिये प्राणोकी बाजी लगा दी है, जो अनेक तरहके शस्त्र चलानेमे कुशल है और सभी युद्धविद्यामे निपुण है । अपर्याप्तं तदस्माक बल भीष्माभिरक्षितम् । पर्याप्त त्विदमेतेषा वलं भीमाभिरक्षितम् ॥१०॥ भीष्मके द्वारा रक्षित (सचालित) हमारी वह सेना काफी नहीं है । (लेकिन) इन (पाडवो) की यह भीमके द्वारा सचालित सेना तो काफी है। इस ग्लोकके अर्थक सम्बन्धमे विशेष विचार पहले ही के पृष्ठोमें किया जा चुका है ।१०। .
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