३९८ गीता-हृदय 1 है । कुन्ती जिस राजाको गोदमें दी गई थी उसके वशका नाम ही कुन्तिभोज था। उसी राजाका पुत्र पुरुजित् नामवाला था। इसीलिये पुरुजित् और कुन्तिभोज ये दो नाम न होके एक ही है। पुरुजित्के ही वशका नाम कुन्तिभोज है। सुभद्रा कृष्णकी बहन थी। उसकी शादी अर्जुनसे हुई थी। इसीलिये सुभद्राके पुत्र अभिमन्युको ही सौभद्र कहा है। द्रौपदेय कहा है द्रौपदीके प्रतिविन्ध्य आदि पाँचो बेटोको। काश्य और काशिराज एक ही आदमी-काशीके राजा को कहा गया है। शिखडी- को तो सभी जानते है । वह नपुसक था और उसीकी अोटमें भीष्म मारे गये । क्योकि नपुसकपर वार वह करते न थे। हृषीकेश एव गोविन्द कृष्णका ही नाम है। गुडाकेश, पार्थ, सव्यसाची अर्जुनको ही कहते है। भारत अर्जुनको भी कहा है और धृतराष्ट्रको भी। कृष्णके ही कुलको वृष्णिकुल और इसीलिये कृष्णको वार्ष्णेय भी कहते है। गोविन्द, अरि- सूदन, मधुसूदन, माधव नाम भी उनका है और भगवान या श्रीभगवान् भी। अर्जुनको परन्तप भी कहा है और पार्थ भी। पार्थका अर्थ पृथा (कुन्ती) का पुत्र । कुन्तीके पुत्र होनेसे ही अर्जुन कौन्तेय कहे गये है। गीताके शुरूमे ही जो व्यूढ शब्द पाया है उसका अर्थ है व्यूहके आकारमें बनी या खडी फौज । व्यूहका अर्थ पहले ही बताया जा चुका है। वही महारथ शब्द भी आया है। यह भी फौजी शब्द है.। जैसे जो दस या ज्यादा शत्रुके हवाई जहाजोको खत्म कर दे उसे फ्रेंच या अग्रेजी भाषामें एस (ace) कहते है । उसी तरह ये महारथ आदि शब्द भी पहले बोले जाते थे। योद्धा लोगोकी ही यह सज्ञाये थी और थी ये चार-अर्द्धरथ, रथ, महारथ और अतिरथ । जो एकसे भी अच्छी तरह न लड सके वह अर्द्धरथ, जो एकसे लड सके वह रथ, जो अकेले दस हजार योद्धाओंसे भिडे वह महारथ और जो असख्य लोगोंसे भिड जाये वह अतिरथ कहा जाता था-"एको दश सहस्राणि योषयेद्यस्तु धन्विनाम् । शस्त्रशास्त्रप्रवीणश्च
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