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प्रवेशिका ३६ . लाख-है, उसे उनकी सात ही अक्षौहिणी कैसे घेरेगी, या उसका सामन करेगी? सजयने इसीके उत्तरमे कहा कि कौन, कहाँ, कैसे खडे है और किसे कैसे खडा किया गया था। पश्चिम ओर पूर्व रुख पाडवोकी और पूर्व और पश्चिम रुख कौरवोकी सेना खडी थी। सारी तैयारी कैसे पूरी हुई, यह बात भी उसने कही। अन्तमे कह दिया कि दोनो फौजे इस प्रकार आके आमने-सामने उँट गईं। शुरूमे दुर्योधन पक्षके सेनापति भीष्म और पाडव पक्षके भीम थे, यह भी बताया । इस प्रकार तेरहवेसे शुरू करके चौवीसतकके अध्यायमे ये बाते कहके गीतापर्वकी एक तरहकी भूमिका पूरी की गई है। फिर पचीसवे से लेकर बत्तीसवेतकमे गीताके कुल अठारह अध्याय पूरे हुए है। पूरी तैयारी और आमने-सामने डॅट जानेकी बात सुनके ही गीताके पहले श्लोकमे घृतराष्ट्रने पछा कि उसके बाद फौरन मारकाट ही शुरू हो गई या कुछ और भी बात हुई ? उसके उत्तरमे ही समूची गीता आ गई। इसी सिलसिलेमे एक और भी मजेदार बात हो गई थी। गीतोपदेशके बाद जब अर्जुन लडनेको तैयार हो गये तो एकाएक देखते है कि युधिष्ठिर कवच वगैरह उतारके नगे पाँव कौरवोकी सेनाकी ओर तेजीसे बढे जा रहे है । देखते ही अर्जुन आदि सभी घबरा गये । हालत यह हो गई कि ये पाँचो भाई कृष्णके साथ उनके पीछे-पीछे दौडे जा रहे है और कहते जा रहे है कि राम, राम, यह क्या कर रहे है ? ऐन वक्तपर आप यह कहाँ चले ? जब युधिष्ठिर न रुके, तो कृष्णने ताड लिया और लोगोको समझा दिया कि भीष्म आदि गुरुजनोंसे लडनेके पहले आज्ञा लेने जा रहे हैं। यही शिष्टाचार है। उधर कौरव सेना वालोको बडी खुशी हुई कि लो, बिना मारे ही दुश्मन मरा । सचमुच युधिष्ठिर नामर्द है। नहीं तो ऐसे वीरबाँकुडे भाइयो और कृष्णकी मददके होते हुए भी क्यो दुर्योधनके पाँव पडने पाता?