३८२ गीता-हृदय आदि-में बीसियो बार कुरुक्षेत्र और कुरुदेशका जिक्र आया है और वहाँ अकाल एव पाला-पत्थरकी बात लिखी गई है । कुरुक्षेत्रका कुरु तो पाडवो तथा कौरवोका पूर्वज ही था । हस्ती भी उनका पूर्वज था। इसीसे हस्ति- नापुर नाम और स्थान पाये जाते है । कुरुक्षेत्रके युद्धकी स्मृति अभीतक वहाँ पाई जाती है और स्थान याद किये जाते है । छान्दोग्य उपनिषदके चौथे अध्यायके १७वे खडमे देवकीपुत्र कृष्णका उल्लेख है और ये थे पाडवोंके नातेदार यह अभी कहा है । सवसे बड़ी बात यह है कि भीष्मके मरणके समय माघमें कृत्तिका नक्षत्रका सूर्य लिखा मानके और तैत्तिरीय आदि सहितायोमे भी यही देखके महाभारतके युद्धका समय ईसासे पूर्व १४००से लेकर २५०० सालके चमें गणितके आधारपर ठीक किया गयाहै। तिलक- ने ओरायनमें इसका वडा प्रामाणिक विवेचन किया है। इसके सिवाय बीसियो भारतीय तथा पाश्चात्य देशीय पुरातत्त्वज्ञोने भी यह वात मानी है । तिलकने गीतारहस्यमें साफ ही लिखा है कि "सभी लोग मानते हैं कि "श्रीकृष्ण तथा पाडवोके ऐतिहासिक पुरुष होनेमें कोई सन्देह नहीं है", "चिन्तामणिराव वैद्यने प्रतिपादन किया है कि श्रीकृष्ण, यादव, पाडव तथा भारतीय युद्धका एकही काल है।" फिर निराधार बात क्यो कही जाय ? तव तो रामायण आदि हमारा सभी इतिहास इसी तरह खत्म होगा । महाभारत पुस्तकको पुराण न कहके इतिहास कहते है और पचमवेद भी। उपनिषदमें भी ऐसा ही कहा है। तो क्या अव उसे निरा उपन्यास माना जाय ? गीताधर्मका निष्कर्ष जो कुछ कहना था कहा जा चुका । गीतार्थ और गीताधर्मको समझने के लिये, हमारे जानते, इससे ज्यादा कहनेकी आवश्यकता नहीं है । इससे कमसे भी शायद ही काम चलता। इसीलिये इच्छा रहते हुए भी हम
पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/३७५
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।