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३३२ गीता-हृदय छोटामा ताड्य ब्राहाण और छोटा पातजल' भाष्य बना था, पीछे उन्ही दोनोका आकार बढाया गया? लेकिन यह तो कोरी कल्पना ही होगी न ? कहा जाता है कि प्राश्वलायन गृह्यसूत्र (३।४।४) में भारत और महा- भारत दोनो हीका उल्लेख है । इसीलिये इन दोकी कल्पना की गई है। मगर नाड्य या पातजल भाष्यके वारेमे तो ऐमा कोई आधार नहीं है। यह भी बात है कि भारत एव महाभारत दो तो मिलते नहीं। महाभारत ही तो मिलता है । और जब उसीमे कुछ और जोडा गया है तो दो लिसने या कहनेके मानी क्या ? जवतक जुदे-जुदे पाये न जाये, दो कैसे कहे जा सकते है ? पासिर गृह्यसूत्रोका समय उपनिपदो, ब्राह्मणो या वेदोंमे पुराना तो है नहीं। फलत यदि उस समय भारत और महाभारत दोनो थे तो और ग्रथोकी तरह दोनोका पता तो चाहिये आज भी। नहीं तो गीता भी दो क्यो न मानी और लिसी जाय, लिखी जाती ? सिर्फ एक सूत्र ग्रन्यमे एक गब्दको लिसा या छपा देयके इतनी लम्बी उडान उचित नहीं। लिखने और छपनेमे भूलमे एक ही नाम, एक ही शब्द दो बार लिब या छप जाते है। ऐमा प्राय देखा जाता है। हां, यदि विभिन्न समयोके लिसे और छपे दो-चार मूत्रग्रन्योमे ऐमी चीज मिलती, तो शायद कुछ कहा जा नकता था। यह भी तो जरा नोचे कि महात्मा और महेश्वर गब्द पहुंचे हुए बडे लोगो या भगवानके लिये प्रयुक्त होते है । मगर इसका यह प्रागय नहीं होता कि वामन्वा महात्मायोके पहले प्रात्मा शब्दमे भी किमीको कहा जाता था, या भगवानको महेश्वर कहने के पहले जर ही पौरोको ईश्वर कहते थे। भगवानकी मना तो नवसे पहले मानी जाती है। फिर उसमे पहले कैमे कोई हुग्ना? "मायिन तुमहेश्वरम्" (४११०) में श्वेताश्वतर उपनिपदने ब्रह्मको ही महेश्वर कहा है। मगर वहां ईश्वरका कोई मुकाविला है नहीं। क्योंकि उनी उपनिषदमे और वेदीमे भी महेश्वरको