३२६ गीता-हृदय जिम प्रकार चित्रमे तीन चीजें होती है । एक तो आधार भूत कागज, दीवार या कपडा वगैर । दूसरा उसी पर रग भरना। तीसरा किसी ठांचे (Frame) के भीतर लगाके रसना। इनमे फेम या ढाँचा तो सिर्फ रक्षार्थ है। ताकि बाहरी हवा पानीसे रग फीका न पडे या पिन न जाये। आधारवाले कागज वगैरह भी जरूरी है। अगर वे ठीक न हो तो न रग ठीक भरेगा और न चिन ठीक उतरेगा। मगर रग भग्ना यही अमली चित्रकारी है, चित्र है। फिर भी प्राधार भी जरूरी है और किमी हद्द तक बाहरी गीगे आदिका ढांचा या फ्रेम भी। यही बात वर्गों की भी समझिये । एक ही काम या पेशेवाले मां- शापका होना आवार स्वरूप कागज या दीवारकी तरह है। प्राविर छायाचित्र या फोटो सभी शीगो पर नहीं उतरता। उसके लिये ग्यास ढगकी शीगेवाली पटरी (Platc) चाहिये । सस्कारकी बात भी युद्ध उसीने मिलती-जुलती है। उसके बाद जो सतान हो उसे उचित शिक्षा आदि देना यही रग भरना है और यही अमल चीज है, अमल चित्र है। खान-पान प्रादिका सयम और विवाह शादीकी सरती तीसरी चीज है जो ढाँचे या फ्रेमका काम देती है । इसीलिये प्राचीन स्मृतिकारोने लिगा है कि "तप श्रुत च योनिश्च एतद् ब्राह्मण कारणम् । तप श्रुताभ्या मोहीनो जाति ब्राह्मण एवम (पातजल महाभाप्य ५।१।११५) "सयम, नदाचार आदि तप, विद्या और ब्राह्मणी ब्राह्मणने जन्म ये तीनी मिलके ग्राह्मण बनाते या पक्की ब्राह्मणता लाते हैं। इसीलिये जिनमें तप और विद्या न हो वह नाममात्रके-कह्नके ही लिये-ग्राह्मण है।" यही बात क्षत्रियादिक सवधर्म भी है । महानायके गुरमे ही पनजलिने जो कहा है कि ब्राह्मणवा तो बिना किसी कारण या प्रयोजनके ही वेद-वेदागको पढना और जानना कर्तव्य है-"ग्राह्मणेन हि अकारणो धर्म. पडगोवेदोऽध्येयो जयश्च" उनका भी यही मतलब है । विना ऐगा कि वह ब्राह्मण होई नही सकता।
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