३१४ गीता-हृदय है। एक तो यह कि सजग रहिये, वह काफी होशियार है। क्योकि आपका ही सिखाया-पढाया है। दूसरा यह कि चेला होके गुरुके ही खिलाफ लडनेकी पूरी तैयारी है, यह उसकी शोखी देखिये । यह दलील, कि उत्तेजित करने और जोग वढानेके वजाय डरानेवाली कमजोरीकी वात कैसे कहेगा, क्योकि तव तो सभी लोग डर जायेंगे ही और मारा गुड ही गोबर हो जायगा, भी निस्सार है। वह तो सिर्फ द्रोणसे ही वाते कर रहा था। बाकी लोगोको क्या मालूम कि क्या वाते हो रही है ? फिर उनके डरनेका सवाल आता ही कहाँ से है ? और द्रोणमे मी नारी हकीकत और अमलियत छिपाई जाय, यह कौनसी बुद्धिमानी थी? वही तो दिक्कतो और चतरोका रास्ता सुझा सकते थे। आखिर दुर्योधन और किमसे दिलको वाते कहता? द्रोणाचार्य इन वातका डका पीटने तो जाते न ये कि सबोके दिल दहलनेको नौवत आ जाती। और जव आगे "सघोपोधार्तराष्ट्राणा" (१६) श्लोकमे साफ ही कह दिया है कि पाडवो- की शखध्वनियोसे दुर्योधनके दलवालोका कलेजा दहल गया, तो फिर वही बात चाहे एक मिनट भागे हुई या पीछे, इसमें सास ढगका एतराज क्या हो सकता है ? जव भीमपर्वके पहले ही अध्यायके १८, १६ श्लोकोमें यही वात लिखी जा चुकी है कि केवल कृष्ण और अर्जुनके शखोकी ही आवाजसे दुर्योधनकी सेनाके लोग ऐसे भयभीत हो गये जैसे मिहके गर्जनमे हिरण कांप उठते है, इसीलिये हालत यहाँतक हो गई कि सबोको पाखाना- पेगाव तक उतर आई, तो फिर यहाँ दुर्योधनको वातोसे दहलनेका क्या N प्रश्न ? अब रही यह दलील कि उद्योगपर्वमें दुर्योधनने स्वय अपनी सेनाकी वडाई करके विजयका विश्वास जाहिर किया था। यह भी वैसी ही है । यो प्रशमाके पुल बाँधना और मनोराज्यके महल बनाना दूसरी चीज है। उसे कौन रोके ? उसमे वाधा भी क्या है ? मगर जब ऊँट पहाडपर
पृष्ठ:गीता-हृदय.djvu/३१०
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।