२६६ गीता-हृदय धर्मविरोध और राजनीतिका विरोध मिटे या न मिटे, भाई-भाई की लडाई खत्म हो या न हो। मगर इनने तो पारस्परिक विरोध मिटा लिया है, समझौता (pact) कर लिया है। इन्हें दुनियामें सर ऊँचा करके रहना जो है । और हमें ? हमे तो गैरोके जूते सहने और गुलामी करनी है न ? फिर हमारा मेल कैसे हो? हाँ, तो इनने यह समझौता कर लिया है कि एक वक्तमे हममे एक ही प्रधान होगा, नेता होगा, मुखिया होगा, बाकी दो उसीके साथ, उसीके अनुकूल चलेगे, उसीकी मदद करेगे, बावजूद इसके कि ये दोनो ही उसके सख्त दुश्मन है | फिर मौके पर जरूरत के अनुसार हममें दूसरा प्रधान तथा लीडर होगा और पहला उस जगहसे हटेगा। उस समय भी बाकी दो उसी प्रधानके सहायक होगे। आव- श्यकतानुसार उसे हटाके जब तीसरा मुखिया बनेगा तो वाकी दो उसके ही सहायक और साथी बनेंगे । यही है इन तीनो का अलिखित समझौता (Convention)। पूर्वोक्त दसवें श्लोकका यही अभि- प्राय है। यहीपर इन्हें गुण कहनेका एक कारण मिल जाता है। जैसा कि अभी कहा गया है, सृष्टिके रहते हुए इन तीनमें दो या अधिकाश हमेशा एकके पीछे रहते हैं, उसीके सहायक और मददगार होते है, यहाँतक कि अपना स्वभाव छोडके उसके विपरीत उसकी मदद करते हैं, जैसे बल- पूर्वक किसी गुलामसे कोई काम कराया जाय । फर्क यही है कि इनके लिये बल प्रयोग नहीं है। दूरदेशीसे खुद ही ये वैसा करते है। और इनमें जो एक कभी प्रधान होता है वही पीछे अप्रधान बन जाता है। इस प्रकार देखते है कि ये तीनो गुण सृष्टिके मूल कारण होते हुए यद्यपि प्रधान कहे जाने योग्य है, तथापि इनकी असली खूबी है दूसरोके अनुयायी बनना, उनकी सहायता करना, उनके अनुकूल होना। सृष्टिकी दृष्टिसे इनकी यह खूबी जरूरी है भी। इसी विशेषताके खयालसे, इसी ओर खयाल आकृष्ट , -
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