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२४२ गीता-हृदय और जवतक जाकर मिल जाते नही तबतक कही शान्त पडे रहेगे, तो सवाल होता है कि यह वारीक देख-भाल कौन करता है और क्यो ? ठीक समयपर वैसे ही चावलोमें उन्हें कहाँ, कैसे पहुँचाया जायगा यह व्यवस्था भी कैसे होती है ? यह तो ऐसा लगता है कि कोई सर्वशक्तिशाली और सर्वव्यापक देखनेवाला चारो ओर अाँखे फाडके हर चीजको बारीकीसे देखता हो और ठीक समयपर सारी व्यवस्था करता हो। यह कैसी वात है, यह प्रश्न स्वाभाविक है ? यह कौन है। क्यो है ? कैसे है ?, ये प्रश्न भी होते है । उसके हाथ बँधे है या स्वतत्र है ? यदि बंधे है तो किससे ? और तब वह सारे काम ठीक-ठीक करेगा कैसे ? यदि स्वतत्र है तो भी वही बात आती है कि सारे काम नियमित रूपसे क्यो होते है कही-कही मनजानी घरजानी क्यो नही चलती? चावलोको ही लेके और भी बातें उठती है। माना कि चावलोंसे असख्य परमाणु निकलते रहते हैं। तो फिर जरूरत क्या है कि उनकी जगह खाली न रहे और दूसरे परमाणु खामखा आके जम जायें ? धीरे- धीरे चावल पतले पड जायें तो हर्ज क्या ? आखिर घुनोके खा जानेसे तो ऐसा होई जाता है। कपूरके परमाणु निकलते हैं और उनमें नये पाते नही। इसीलिये वह जल्द खत्म हो जाता है। वही वात चावलोमें भी क्यो नही होती ? यदि कहा जाय कि चावलवाला मर जो जायगा, तो प्रश्न होता है कि आग लगने या चोरी होनेपर क्या वह भूखो नही मर जाता जब चावल लुट जाते या जल जाते है ? और कपूर वाले पर भी यही दलील क्यो न लागू हो ? चावल जलनेपर या लुटजाने पर जो होता है वही बात यो भी क्यो नही हो ? किसी समय चावलोके परमाणु ज्यादा निकल जायें और वह गल-सड जाये और किसी समय नहीं, ऐसा क्यो होता है ? इसी तरहके हजारो सवाल उठ खडे होते है यदि हम इन पदार्थोके खोद-विनोद और ?