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अध्यात्मवाद और भौतिकवाद - खास कीमत नही कूतती । वे तो ऐसे मौकोपर हमेशा सिर्फ उसी.आत्मा, परमात्मा आदिकी दृष्टिसे इसका निर्णय करते चले आ रहे है कि क्या बुरा और क्या भला है। उनने भले-बुरेकी कसौटी सिर्फ यही रखी है कि किस कामसे आत्मा कितना नीचे गिरती या ऊँचे उठती है, उसका कितना पतन और उत्थान होता है और करनेवाला उससे परमात्माके कितना नजदीक या दूर जाता है। उन लोगोने इस बातकी कसौटी भी अपनी-अपनी पहुँच और समझके अनुसार बना रखी है जिससे इस बातकी परख हो सके कि उत्थान या पतन आदि कहॉतक और कैसे हो रहे है । अभी इस सम्बन्धमे अधिक लिखना अप्रासगिक है। दूसरे दलवाले इसके विपरीत उचित, अनुचित या कर्त्तव्य, अकर्तव्य वगैरहकी जाँच केवल सासारिक हानि-लाभ एव नफा-नुकसानके ही तराजू- पर करते है। उनकी नजरोमे या तो आत्मा, परमात्मा या लोक, परलोक नामकी कोई चीज हई नही, या अगर हो भी तो उसे इस मामलेमे खामखा "दालभातमे मूसरचन्द" बनने बनानेकी जरूरत नहीं। वे कहते है कि खास तौरसे यदि कोई अपने परमात्मा, भगवान या खुदाकी पूजा-परिस्तिश करना चाहे और उसकी ढूँढ खोजमे परीशान हो, तो उसे आजादी है, आजादी हो सकती है, और इस तरह जो रास्ता उसने अख्तियार किया है उसकी जॉच-पडतालके लिये भले ही वह आत्मा, परमात्माकी कसौटी- का इस्तेमाल कर सकता है। उसमें दूसरेको या दूसरे दलवालोको उज नही। उसकी यह अपनी निजी चीज़ जो ठहरी । मगर जनसाधारण या आम लोगोके कामोको तौलनेके लिये उस तरहकी नाप-जोखकी इजाजत उसे हर्गिज दी नहीं जा सकती, और न ऐसा करनेका उसे हक ही प्राप्त है। वे तो सिर्फ यही देखना चाहते है कि किस कामसे ज्यादा लोगोको फायदा या नुकसान पहुँचता है । क्योकि किसी भी कामसे सबोका न तो फायदा ही हो सकता और न नुकसान ही। चोरी, डकैतोसे भी तो कुछ