२२२ गीता-हृदय या खडन-मडन ही होगा, जिसके लिये इन अनेक पक्षोकी जानकारी जरूरी हो जाती है। यहाँ तो ब्रह्मज्ञान और मोक्षका ही सवाल है । सो भी मरण कालकी जानकारीकी वात उठाके यह भी जनाया है कि विशेष रूपसे मरण समयके लिये जरूरी बाते यहाँ बता दी गई है। यही कारण है कि चार श्लोकोमे ये वाते खत्म करके पांचवेके ही "अन्तकाले च" आदि शब्दोसे शुरु करके उसी अन्तकाल या मरण समयकी ही वातें अन्ततक लिखी गई है । तरीका भी बताया गया है कि किस प्रकार उस समय प्रात्मा और ब्रह्मका साक्षात्कार होता है। मरनेपर लोग किन-किन रास्तोसे होके जाते है यह वात भी अन्तमे कही गई है। ऐसी हालतमें आधिभौतिक आदि मतवादोका तो यहाँ अवसर ही नही है। इसीलिये मानना पडता है कि इन वखेडोसे यहाँ कोई भी मतलव नही है । अपना पक्ष असल बात यह है कि प्राचीन समयमे कुछ ऐसी प्रणाली थी कि हम क्या है, यह ससार क्या है और हमारा इसके साथ सम्बन्ध क्या है, इन्हीं तीन प्रश्नोको लेकर जो अनेक दर्शनोकी विचार धारायें हुई थी और प्रात्मा- परमात्मा श्रादिका पता लगा था, या यो कहिये कि इनकी कल्पना की गई थी, उन्हीमे एक व्यावहारिक या अमली धारा ऐसी भी थी कि उसके माननेवाले निरन्तर चिन्तनमे लगे रहते थे। उनकी वात कोई शास्त्रीय- विवेचनकी पद्धति न थी। वे तो खुद दिन-रात सोचने-विचारने एव ध्यानमे ही लगे रहते थे। इसीलिये हमने उनकी धारा या प्रणालीको अमली और व्यावहारिक ( Practical ) कहा है। इस प्रणालीके सैद्धान्तिक पहलूपर लिखने-पढने या विवाद करनेवाले भी लोग होगे ही। मगर हमारा उनसे मतलब नहीं है और न गीताका ही है। गीतामें तो अमली वातका वह प्रसग ही है। वहीं वात वहां चल रही है । प्रागे भी
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