कर्तव्य,अकर्त्तव्यकाझमेला,कर्म करे,न करेका सवाल,बुरे,भलेकी
पहेली और इन दोनोका निर्णय कैसे हो यह जिज्ञासा-ये सभी-पुरानी बाते है,इतनी पुरानी जितनी पुरानी यह दुनिया है। कोई भी ऐसा देश नही है,समाज नही है जहाँ एक न एक समय यह उधेड-बुन और समस्या लोगोके सामने-कमसे कम उनके सामने तो अवश्य ही जिन्हे समझ हो और जो तहके भीतर घुसनेकी योग्यता रखते हो-आ न खडी हुई हो। सभी देशकालके विद्वानो के समक्ष ये और इसी तरहके बहुतेरे प्रश्न बराबर माते रहे है और उनने अपनी-अपनी समझ तथा पहुँचके मुताविक इनका उत्तर भी दिया है,समाधान भी किया है। मानवसमाजके इतिहासमे यह एक ही बात ऐसी है जो बिना धर्म और सम्प्रदायके भेदके,समान रूप से सभी जगह पाई गई है और,हमे आशा है,आगे भी पाई जायगी। अकेले इस सम्बन्धके प्रश्नोने लोगोको जितना परीशान किया है और उन्हे इनके बारेमे जितनी माथापच्ची करनी पड़ी है,शायद ही किसी एक विषयको लेकर यह बात हुई हो। इसीसे पता चलता है कि यह विषय कितना महत्त्वपूर्ण है।
इन सवालो,इन प्रश्नो और इन जिज्ञासाओके जो उत्तर आजतक दिये गये है और जिन्हे लोगोने किसी न किसी रूपमे लिख डाला है,उन्हे अगर एक जगह जमा कर दिया जाय तो खासा पहाड खडा हो जाय।