पुराने समाजकी झांकी १६१ . दिमाग निस्सन्देह आले दर्जेका था और पागलपनकी दशामे भी उनकी चमत्कारशील प्रतिभा साफ झलकती थी।" पश्चिमी दर्शनोका इति- हासका लेखक दुरान्ती (Duranti) भी लिखता है कि, “The direct connection of madness and genius 18 established by the biographies of great men, such as Rousseau, Byron, Alfieri etc." "पागलपन और प्रतिभाका सीधा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है यदि हम रूसो, बायरन, आलफीरी जैसे महापुरुषोकी जीवनियाँ गौरसे पढे ।" पुराने समाजकी झाँकी बेशक, इस जमानेमे यह बात ताज्जुबकी मालूम होगी चाहे हजार पुराने दृष्टान्त दिये जायें, या महापुरुषोके वचन उद्धृत किये जायें। आज तो ऐसे लोग नजर आते ही नहीं। जीतेजी सदाके लिये हमारी माया-ममता मिट जाये और हम किसीको भी शत्रु-मित्र न समझे, यह बात तो इस ससारमे इस समय' अचम्भेकी चीज जरूर है। गीताने इसपर मुहर दी है अवश्य । मगर इससे क्या ? दिमागमे भी तो आखिर वात आये । ज्यो-ज्यो सभ्यताका विकास होता जाता है, मालूम होता है, यह बात भी त्यो-त्यो दूर पडती और असभवसी होती जाती है। असलमे दिनपर दिन हम इतना ज्यादा भौतिक पदार्थोंमे लिपटते जाते है कि कोई हद्द नही। इसीलिये यह बात असभव हो गई है। मगर पुराने जमानेके समाजमें माया-ममताका त्याग इतना कठिन न था। गीताने जिस समय यह बात कहो है उस समय यह वात इतनी कठिन बेशक नही थी। उस समयका समाज ही कुछ ऐसा था कि यह बात हो सकती थी। और तो और, यदि हम बर्बर एव असभ्य कहे जानेवाले लोगोका प्रामाणिक इतिहास पढे तो पता लग जायगा कि उनके लिये यह बात कही आसान थी। उनकी
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