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गीताका साम्यवाद १७६ मार्क्सका साम्यवाद भौतिक होने के कारण हलके दर्जेका है, तुच्छ है गीताके आध्यात्मिक साम्यवादके मुकाबिलेमे। वह तो यह भी कहते ह कि हमारा देश धर्मप्रधान एव धर्मप्राण होनेके कारण भौतिक साम्यवादके निकट भी न जायगा। यह तो आध्यात्मिक साम्यवादकोही पसन्द करेगा। असलमें इस युगमे जो साम्यवादकी हवा बह निकली है उसीसे घबराके यह बाते उसीके जवाबमे कही जाती है। उस तरहकी दूसरी चोज न रहनेपर तो लोग खामखा उधर ही झुकेगे। इसीलिये गीताकी यह बात लोगोके सामने ला खडी कर दी जाती है, ताकि स्वभावत लोग इधर ही आकृष्ट हो और दूसरे साम्यवादका खतरा न रह जाय । खूबी तो यह है कि जिन्ह अध्यात्मवादसे लाख कोस दूर रहना है वह भी गीताकी यही वात रटते फिरते है । उनके स्थायी स्वार्थोंको भौतिक साम्यवादसे बहुत बड़ा खतरा होनेके कारण ही वे गीताका नाम लेके टट्टीकी अोटसे शिकार खेलते है हर हालतमे इस चीजपर प्रकाश डालना जरूरी है। असलमे गीतामे प्राय बीस जगह या तो सम शब्दका प्रयोग मिलता है या उसीके मानीमे तुल्य जैसे शब्दका प्रयोग। दूसरे अध्यायके ३८ तथा ४८वे, चौथेके २२वे, पांचवेके १८, १६वे, छठेके ८, ६, १३, २६, ३२, ३३वे, नवेके २६वे, बारहवेके १३, १८वे, तेरहवेके ६, २७, २८वे, चौदहवेंके २४वे तथा १८वेके ५४वे श्लोकोमें सम, समत्व या साम्य शब्द आया है। किसी-किसी श्लोकमे दो बार भी पाया है। चौदहवेके २४वें श्लोकमें समके साथ ही तुल्य' शब्द भी आया है और २५वेमे सिर्फ तुल्य शब्द ही दो बार मिलता है। इनमे केवल छठेके तेरहवे श्लोकवाला सम शब्द 'सीधा' (Straight) के अर्थमे प्रयुक्त हुआ है । इसलिये उसका साम्यवादसे कोई भी ताल्लुक नही है । शेष सम शब्दो या उन्हीके अर्थ प्रयुक्त तुल्य शब्दोका साम्यवादसे सम्बन्ध जरूर जुट जाता है । यदि असक्त, अनासक्त, परित्यागी या परित्याग आदि शब्दोको, जो ,