यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३४ गीता-हृदय . तथापि दूसरे अध्यायके शुरूके दो और तीन श्लोकोमें जो कुछ कहा गया है वह इतना सुन्दर है और मार्क्सवादके साथ गीताको मिलानेमें उसका इतना महत्त्व है कि हम उसे लिखे बिना रह नही सकते। वे दोनो श्लोक ये है, "कुतस्त्वा कश्मलमिद विषमे समुपस्थितम् । अनार्यजुष्टमस्वय॑म- कीत्तिकरमर्जुन ॥ क्लैब्य मा स्म गम पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते। क्षुद्र हृदयदौर्बल्य त्यक्तोत्तिष्ठ परन्तप ॥" इन दोनोका अर्थ ऐसा है, “अर्जुन, इस विकट समयमें, जब कि सारी तैयारी हो चुकनेके बाद भिडन्त होने ही वाली है, तुममें यह कमजोरी कहाँसे आ गई ? कमजोरी भी ऐसी कि भले लोग जिससे लाख कोस दूर भागें, और जो निहायत मनहूस और अमगल होनेके साथ ही इज्जतको भी मिट्टीमें मिला दे। खबरदार, नामर्दी मत दिखाओ । यह चीज तुममें ज़ेबा नहीं देती। इसलिये बहादुर, दिलकी इस बेहूदी कमजोरीको छोडके तैयार हो जाओ।" मगर इतनेसे ही काम नहीं चलेगा। इन बातोकी खूबी और अहमियत समझनेके लिये हमें अर्जुनकी उन बातोपर सरसरी नजर दौडानी होगी जो उसने इससे पहले कही थी और जिनके जवावमें यह कहा गया है। पहले अध्यायके २८-४६ श्लोकोको देखनेसे पता चलता है कि अर्जुनको जैसे धर्म और अक्लका अजीर्ण हो गया हो। उसका हृदय उस समय दयासे दव गया था, यह बात उससे ठीक पहलेके २७वें श्लोकके "कृपया परयाविष्ट "से स्पष्ट है। यही कारण है कि बुद्धि ठोक काम करती थी नही । फलत अक्लका अजीर्ण मिटाना जरूरी हो गया । जो लोग ऐन कर्त्तव्य-पालनके समय दिलकी कमजोरी और नादानीसे दयार्द्र हो जाते और रहम करने लगते है वह ऐसी ही वे सर-पैरकी बातें करते है। १९०५मे काले सागरके रूसी जहाजी वेडेके सिपाहियोको मजवूरन अपने ही अफसरोके विरुद्ध बगावत करनी पड़ी थी। क्योकि .