१०८ गीता-हृदय . दूसरी ओर हम विरोधमे भी एक निश्चित उत्तर नही दे सकते। यदि कोई पादरी राजनीतिक कामोमें हमारा साथ देना चाहता है, हमारी पार्टीका काम समझ-बूझके करता है और पार्टीके कार्यक्रमका उल्लघन नहीं करता, तो उसे हम अपनी पार्टीमे ले सकते है। क्योकि उस दशामें हमारे कार्यक्रमके सिद्धान्तो और भावोके साथ अगर उस पादरीके धार्मिक विचारोका कोई विरोध हो तो यह केवल उस पादरीके ही विचारनेकी बात है। किसी राजनीतिक सस्थाका यह काम हर्गिज नही है कि वह अपने प्रत्येक मेम्बरोमें यह बात ढूँढती फिरे कि पाया उसके कार्यक्रमके साथ उनके दूसरे विचारोका विरोध तो नहीं है। लेकिन वेशक ऐसे पादरी तो यूरोपमे भी बहुत ही कम मिलते है और रूसमे तो वे शायद ही मुश्किलसे मिल सकें। "विपरीत इसके यदि कोई पादरो सोशल डेमोक्रेटिक पार्टीमें दाखिल होके अपना प्रधान काम अपने धार्मिक विचारोके प्रचारको ही बना ले, तो बेशक उसे पार्टीसे निकाल देना ही होगा। हमे सोशल डेमोक्रेटिक पार्टीमे मजदूरोको सिर्फ दाखिल करना ही नही होगा। किन्तु जो मजदूर ईश्वरमे विश्वास करते है उन्हें भी अपनी ओर खिंच आनेके लिये सभी सभव उपाय करने होगे। हम किसीको भी भडकाने या रज करनेके पक्के विरोधी है। लेकिन हम तो उन्हें अपनी पार्टीमें इसीलिये खीचते है कि उन्हें मौका दें कि वे हमसे (पार्टीसे) लड ले। हम तो पार्टीके भीतर विचार-स्वातत्र्यका मौका देते ही है। मगर इस स्वतत्रताकी कुछ सीमाये है जिनका निर्धारण पार्टीके भीतर छोटे-मोटे दल बननेके नियमोसे ही हो जाता है। पार्टीके बहुमतने जिन विचारोको नहीं माना हो उन्हीका जो प्रचार करे उनसे हमारा साथ नही हो सकता।" हमने जानबूझकर यह लम्बा अवतरण दिया है जिससे धर्मके इस पेचीदे मामलेपर काफी प्रकाश पड जाय । इसमे कई ऐसी बाते है जो
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