१०६ गीता-हृदय भी होगा-हानिकारक इस मोटी दृष्टिने नहीं कि पिछडे विचारके मजदूर यहां नरक जायेंगे, या चुनावके ममय नास्तिक प्रचारकोको उनका वोट न मिलनेने मजदूर-सघके चुनावमे वे हार जायेंगे। किन्तु वास्तविक वर्गगको प्रगतिकी दृष्टिसे भी वह हानिकारक होगा और वर्गसंघर्पकी वर प्रगति ही, वर्तमान पूंजीवादी समाजकी हालतमे, नास्तिकताके केवल प्रनाकी अपेक्षा नौ गुना प्रभावशाली रीतिमे क्रिस्तान मजदूरोको सोगल- मोरोटिक पार्टी तथा नास्तिकवादमे प्रवेश करायेगी। बल्कि बैंगी दगामे तो नास्तिकताका प्रचारक उन पादरियोका ही मददगार बन जायगा जो गवगे अधिक यही बात नाहते है कि हडतालके ममय भी मजदूरोमें हडतालकारी और उसके तोउनेवाले ऐसे दो दल न होकर नास्तिक और ग्राम्निक (किस्तान) यही दो दल कायम रहें। उस हालतमे ईश्वरके विरुद्ध बमन्व्यनीमे युद्ध चलानेवाले अराजक लोग तो पादरियो और पूंजीवादियोकी ही मदद करेंगे, जैमा कि वे लोग सचमुच गदा ही ऐमी गहायता करते ही है। "लेकिन माक्र्मवादीको तो भौतिकवादी होना होगा---अर्थात् वह ईश्चरका सानु नो होगा। मगर होगा भौतिकवाद तथा द्वन्द्ववादकी ही दृष्टिगे। इनका पाराय यह है कि उसे धर्मविरोधी लडाईको केवल एक दिमागी चीज नहीं बनाना होगा और न उसे केवल नास्तिकताकी मैद्रान्तिक दृष्टिगे नलाना ही होगा-ऐनी मैदानिक दृष्टिमे जो हमेगा हरेक परिस्थितिमें नमान-रूपने लागू होती है। किन्नु स्थूल मासारिक (बाहरी हिताहितको) दृष्टिमे ही बनाना होगा, जिमका आधार होगा वर वगंगधर्म जो मनमुन चालू है और जो जनममूहको और उपायोकी अपेक्षा ही अच्छी तरह निक्षित तया कुगल बनायेगा। माम्मेवादीको नाहि निक वालविष परिस्थितिका गयाल करे, वह इस योग्य हो लिगवी गमक गया कि यहांना जानेपर अराजकवाद और अवसरवादमे
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