२. मार्क्सवाद और धर्म जानसे मारने तक क्यो परीशान हो ? हमे तो लोगोको उसके डकसे ही भविष्यमे बचाना है न ? या कि उसका खून भी पीना है ? हाँ, तो फोडेपर नश्तर जरूर लगाये । आज श्रेणीयुक्त समाजमे धर्मके लिये स्थान नहीं है, ऐसा जरूर कहे और खुशीसे कहे। मगर कहे या न कहे, हर हालतमे वर्गसंघर्ष जरूर करे, ताकि ईश्वरवादियोकी पोल खुल जाय । जितनी जरूरत है उतना ही कहे और करे । बहके न । जरूरतसे ज्यादा न बढे जिससे कही बहक जायँ । इससे सजग रहे । हमारे जानते यही मार्क्सवादका इस सम्बन्धका निचोड है। मगर अाइये, जरा और भी विस्तारके साथ लेनिनके इस सम्बन्धके वचनोपर विचार कर ले जो उसी लेखमे पाये जाते है । वह लिखता है- “The workers in a certain district and in a certain bianch of industry are divided, we will assume, into a progressive section of class cons- cious Social Demociats, who are, of course, atheists, and a rather backward section, which still main- tains contact with the rural districts and the pea- santry, which believes in God, goes to church and is perhaps under the direct influence of a priest, who, we will assume, has organised a Christian Labour Union. Let us assume further that the economic struggle in this district has led to a strike The duty of the Marxist is to place the success of this strike in the forefront and to prevent the workers from being split up into atheists and Christians. Atheist propaganda in such circum-
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