. गीता, अनुवाद और टिप्पणी-- १५ अध्याय । ८०१ छंदांसि यस्य पर्णानि यन्तं वेद स वेदवित् ।।१।। लिये इसको आशय (मर्थात् घोड़े का चान) नाम प्राप्त हुआ होगा। नी, कश और 'स्थ 'स्विर-यह साध्यात्मिक निरक्ति पीछे की कल्पना । नाम रूपात्मक साया या म्यरूप जय कि विनाशवान् अथवा हर घड़ी में पलटनेवाला ई. तब उसको फल तक न रहनेवाला' तो कह सकेंगे। परा 'एव्यय-सात जिलका कमी भी व्यय नहीं होता'-विशेषण स्पष्ट कर देता है कि यह श यह अभिमत नहीं । पहले पीपल के मृत को झी माय इस थे, फोपनिषद् (६.१) में जा यह माझमय अमृत प्रश्वत्पवृक्ष कहा गया- सम्यंमूलोऽयामशाल एपोऽधायः सनातनः । तदेव शुक्र नयात्र तंदवामृतमुच्यते ॥ यह भी गही और ध्वमूलमधःशावं " इस पर साश्य से ही व्यक्त शेता है कि भगवद्गीता सायन पळोपनिषद के वर्णन ने ही लिया गया है। परमेश्वर वर्ग में है और उससे उपजा हुआ जगत नीचे अर्थात् मनुष्यलोक में, पतः यगणन किया गया है कि इस वृक्ष का मूल अधांत परमेश्वर ऊपर है और इसपी मार्गक शापा सान जगन का फैलाब नीचे विस्तृत है । परन्तु प्राचीन धर्मग्रन्थों में एक और कल्पना पाई जाती है कि यह संसार वृक्ष वटवृत होगा, न कि पीपल: शंकि बड़ के पेड़ के पाये ऊपर से नीचे को लटक माते । उदाहरण के लिये यह वर्णन है, कि अश्वत्यद आदित्य का वृत है और "न्यग्रोधी वागगयो नृतः 'न्यग्रोध अर्याद नीचे (न्या) घढ़नेवाला (रोध) यह का पड़ चरण का वृक्ष (गोमिलगृल. ४. ७. २४) । महाभारत में दिसा कि मार्फरादेय प्रापिने प्रलयकाल में बालरूपी परमेश्वर को एक (उस प्रलय. साल में भी नष्ट न होनेवाले, प्रतएव) अव्यय न्यग्रोध अर्थात् बड़ के पेड़ की इटहनी पर दंगा गा (मभा. वन. ८.६१)। इसी प्रकार छान्दोग्य उपनिपद में यह दिखलाने के निये. फि अव्यक्त परमेश्वर से अपार दृश्य जगत् कैसे निर्मित jra , जो शान्त दिया है यह भी न्यग्रोध के ही चीज का है (छां. ६. १२. १)। श्वेताम्बर उपनिषद में भी विश्ववृक्ष का वर्णन है (श्वे. ६.६); परन्तु वहाँ खुलासा नदी बतलाया कि यह कौन सा पक्ष है । मुण्डक उपनिषद् (३. १) में ऋग्वेद काही का वर्णन ले लिया है कि वृक्ष पर दो पक्षी (जीवात्मा और परमात्मा) बैठे हुए हैं जिनमें एक पिप्पल अर्थात पीपल के फलों को खाता है । पीपल और बड़ को छोड़ इस संसार वृक्ष के स्वरूप की तीसरी कल्पना औदुम्बर की है। एवं पुराणों में यह दत्तात्रेय का वृक्ष माना गया है। सारांश, प्राचीन ग्रन्थों में ये तीनों कल्पना है कि परमेश्वर की माया से उत्पन्न हुआ जगत एक बड़ा पीपल, घड़ या गूलर है। और इसी कारण से विपणुसहस्त्रनाम में विष्णु के ये तीन गी. र. १०१
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