पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/८२८

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1 गीता, अनुवाद और टिप्पणी-१३ अध्याय । ७८६ पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुंक्त प्रकृतिजान्गुणान् । कारणं गुणसंगोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ॥२१॥ IS उपद्रष्टाऽनुमंता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः । परमात्मेति चाप्युक्तो देहेऽस्मिन्पुरुषः परः ॥२२॥ य एवं वेत्ति पुरुष प्रकृतिं च गुणैः सह । सर्वथा वर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते ॥ २३ ॥ कारण कही जाती है। और (फर्ता न होने पर भी) सुख-दुःखों को भोगने के लिये पुरुप (क्षेत्रज्ञ) कारण कहा जाता है। [इस श्लोक में कार्यकरण के स्थान में कार्यकारण भी पाठ है, और तय उसका यह अर्थ होता है। सांख्यों के महत् आदि तेईस तस्व एक से दूसरा, दूसरे से तीसरा इस कार्य-कारगा कम से उपज कर सारी व्यक्त सृष्टि । प्रकृति से बनती है। यह अर्थ भी देना नहीं है। परन्तु क्षेत्र क्षेत्र के विचार में क्षेत्र की उत्पत्ति यतलाना प्रसंगानुसार नहीं है। प्रकृति से जगत के उत्पन्न होने का वर्णन तो पहले ही सातवें और नवें अध्याय में हो चुका है। अतएव कार्य- {करण ' पाठ ही यहाँ भधिक प्रशस्त देख पड़ता है । शाहरभाष्य में यही कार्यकरण ' पाठ है।] (२१) पोंकि पुरुप प्रकृति में अधिष्ठित हो कर प्रकृति के गुणों का उपभोग करता है; और (प्रकृति के ) गुणों का यह संयोग पुरुष को भली-पुरी योनियों में जन्म लेने के लिये कारण होता है। । [प्रकृति और पुरुष के पारस्परिक सम्बन्ध का और भेद का यह वर्णन सत्यशास्त्र का है (देखो गीतार. पृ. १५४-१६२) । अब यह कह कर कि वेदान्ती लोग पुरुष को परमात्मा कहते हैं, सांख्य और वेदान्त का मेल कर दिया गया है और ऐसा करने से प्रकृति-पुरुष विचार एवं क्षेत्र-तंत्रज्ञ-विचार की पूरी एकवाक्यता हो जाती है।] (२२) (प्रकृति के गुणों के) उपद्रष्टा अर्थात् समीप बैठ कर देखनेवाले, अनु- मोदन करनेवाले, भर्ता अर्थात् (प्रकृति के गुणों को) यढानेवाले, और उपभोग करनेवाले को ही इस देश में परपुरुष, महेश्वर और परमात्मा कहते हैं। (२३) इस प्रकार पुरुष (निर्गुण) और प्रकृति को ही जो गुणों समेत जानता है, वह कैसा ही थर्ताव क्यों न किया करे उसका पुनर्जन्म नहीं होता। 1. [२२वें श्लोक में जब यह निश्चय हो चुका कि पुरुप ही देह में परमात्मा है, तब सांख्यशास्त्र के अनुसार पुरुष का जो उदासीनत्व और अकर्तृत्व है वही मात्मा का प्रकर्तृत्व हो जाता है और इस प्रकार सांख्यों की उपपत्ति से वेदान्त की एकवाक्यता हो जाती है। कुछ वेदान्तवाले अन्यकारों की समझ है, कि सांख्य-वादी वेदान्त के शत्रु हैं, अतः बहुतेरे वेदान्ती सांख्य उपपत्ति को सर्वथा