पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/८२१

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७८२. गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र । क्षेत्रक्षेत्रायोनिं यत्तझानं मतं मम ॥ २॥ IS तत्क्षेत्रं यच्च यादृक् च यद्विकारि यतश्च यत् । स च यो यत्प्रमावश्च तत्समासेन मे शृणु ॥ ३॥ ऋषिभिर्बहुधा गीतं छंदोभिर्विविधैः पृथक् । ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमन्दिर्विनिश्चितः॥४॥ कहते हैं। (२) हे भारत! सय क्षेत्रों में क्षेत्रन भी मुझे ही समझ । क्षेत्र और क्षेत्र का जो ज्ञान है वही मेरा (परमेश्वर का)ज्ञान माना गया है। 1 [पहने श्लोक में क्षेत्र और क्षेत्रन' इन दो शब्दों का अर्थ दिया है। योर दूसरे श्लोक में क्षेत्रज्ञ का स्वरूप बतलाया है कि क्षेत्र में परमेश्वर है, प्रियवा जो पियड में है वही ब्रह्मांड में है। दूसरे श्लोक के चापि मी शन्दों का भर्थ यह ई-न केवल क्षेत्रज्ञ ही प्रत्युत क्षेत्र मी में ही हूं। क्योंकि जिन पब महाभूतों से क्षेत्र या शरीर बनता है, वे प्रकृति से बने रहते हैं। और सातवें तथा पाठवें घध्याय में रतज्ञा भाये है कि यह प्रकृति परमेश्वर की ही कनिष्ठ विभूति है (देतो ०.४, ८.४, ६.८)। इस रीति से क्षेत्र या शरीर के पञ्चमहाभूतों से बने हुए रहने के कारण क्षेत्र का समावेश उस वर्ग में होता है जिसे घर-मक्षर-विचार में 'नर' कहते हैं और क्षेत्रज्ञ ही परमेश्वर है। इस प्रकार क्षरावर-विचार के समान ही क्षेत्र नमन का विचार भी परमेश्वर के ज्ञान का मुफ भाग वन जाता है (देखो गीतार. पृ. १४२-१४)ौर इसी अभि- प्राय को मन में ला कर दूसरे श्लोक के अन्त में यह वाक्य आया है कि "क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का जो ज्ञान है वही मेरा अर्थात् परमेश्वर का ज्ञान है।" जो अद्वैत वेदान्त को नहीं मानते, उन्हें "क्षेत्रज्ञ भी मैं हूँ" इस वाक्य की खींचातानी करनी पड़ती है और प्रतिपादन करना पड़ता है कि इस वाक्य से 'जैत्रज्ञ' तथा ' मैं परमेश्वर' का प्रमेदभाव नहीं दिखाया जाता | और कई लोग 'मेरा' (मम) इस पद का अन्वय 'ज्ञान' शब्द के साथ न लगा' मतं मर्याद माना गया है शब्द के साथ लगा कर यो अर्थ करते हैं कि "इनके ज्ञान को मैं ज्ञान समझता हूँ।" पर ये अर्थ सहज नहीं हैं। मात्रै अध्याय के प्रारम्भ में ही वर्णन है कि देश में निवास करनेवाला प्रात्मा (अधिदेव) मैं ही हूँ प्रयवा "जो पिण्ड में है, वही ब्रह्माण्ड में है।" और सातवे में भी भगवान ने 'जीव' को अपनी ही परा प्रकृति कहा है (७.५)। इसी अध्याय के रखें और ३॥ के श्लोक में भी ऐसा ही वर्णन है। अब वतनाते हैं कि क्षेत्र क्षेत्र का विचार कहाँ पर और किसने किया है-] (३) चैत्र क्या है, वह किस प्रकार का है, उसके कौन कौन विकार है, (इसमें मी) किससे क्या होता है। ऐसे ही वह अदि क्षेत्रन कौन है और उसका प्रभाव क्या है-इसे मैं संक्षेप से बतज्ञाता हूँ, सुन । (१) ब्रह्मास्त्र के पर्दो स भी यह