गोवा, अनुवाद् और टिप्पणी- ६ अध्याय । आत्मैव ह्यात्मनो बंधुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥ ५ ॥ बंधुरात्माऽऽत्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः। अनात्मनस्तु शंधुत्वं वर्ततात्मैव शत्रुषत् ॥ ६॥ $ जितात्मनः प्रशाल्लस्य परमात्मा समाहितः। शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः॥७॥ स्वयं अपना शत्रु है । (६) जिसने अपने आप को जीत लिया, वह स्वयं अपना सन्चु है परन्तु जो अपने आप को नहीं पहचानता, वह स्वयं अपने सार धामु के समाव यैर करता है। [इन दो लोकों में ग्राम स्वतन्त्रता का वर्णन ई और इस ताव का प्रति. पादन है, कि हर एक को अपना उदार आप ही कर लेना चाहिये और प्रकृति फितनी ही पनवती क्यों न हो उसको जीत कर आत्मोन्नति कर लेना हर एक के स्वाधीन है (गीतार. पृ. २०७-२८२ देखो)। मन में इस तव के मनी मांति जम जाने के लिये ही एक बार अन्वय से और फिर व्यतिरेक से दोनों रीतियों से-वर्णन किया है, कि आत्मा अपना ही मित्र का होता है और भात्मा अपना शत्रु कव हो जाता है, और यही तत्त्व फिर १३. २५ श्लोक में भी पाया है। संस्कृत में 'आत्मा' शब्द के ये तीन अर्थ होते हैं (७) अन्तरात्मा, (२) मैं स्वयं, और (३) अन्तःकरण या मन । इसी से यह प्रात्मा शब्द इसमें और अगले श्लोकों में अनेक वार पाया है। अब बतलाते हैं, कि धात्मा को अपने अधीन रखने से क्या फल मिलता है- (७) जिसने अपने पारमा अर्थात् अन्तःकरण को जीत लिया है, और जिसे शान्ति माल हो गई हो, उसका परमात्मा' शीत-उष्ण, सुख-दुःख और मान-अपमान में समाहित अर्याद सम एवं स्थिर रहता है। । [इस श्लोक में परमात्मा शब्द आत्मा के लिये ही प्रयुक्त है। देह का मात्मा सामान्यतः सुख-दुःख की उपाधि में मान रहता है। परन्तु इन्द्रिय-संगम से उपाधियों को जीत लेने पर यही श्रात्मा प्रसस हो करके परमात्मरूपी या परमेश्वरस्वरूपी बना करता है। परमात्मा कुछ आत्मा से विभिन्न स्वरूप का पदार्थ नहीं है, आगे गीता में ही (गी. १३. २२ और ३) कहा है कि मानवी शरीरमरहनवाला आत्मा हीतत्वतः परमात्मा है। महाभारत में भी यह वर्णन है- आत्मा क्षेत्रज्ञ इत्युक्तः संयुक्तः प्राकृतैर्गुणैः। तैरेव तु विनिमुक्तः परमात्मेत्युदाहृतः ।। "प्राकृत अर्थात् प्रकृति के गुणों से (सुख-दुःख नादि विकारों से) बद्ध रहने के कारण खात्मा को ही क्षेत्रज्ञ या शरीर का जीवात्मा कहते हैं। और इन गुणों से मुक्त होने पर वही परमात्मा हो जाता है" (ममा. शां. १८७.२४)। गीतारहस्य के प्रकरणा से ज्ञात होगा, कि अद्वैत वेदान्त का सिद्धान्त मी -
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