पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/७०७

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६६८ गीतारहत्य अथवा कर्मयोगशास्त्र । चतुर्थोऽध्यायः। श्रीभगवानुवाच । इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् । कर्म करने के लिये इन्द्रियों पर अपनी सत्ता होनी चाहिये, वे अपने काबू में र बस, यहाँ इतना ही इन्द्रिय-निग्रह विवक्षित है । यह अर्थ नहीं है कि इन्द्रियों को जबर्दस्ती से एकदम मार करके सारे कर्म छोड़ दे (देखो गीतार. पृ. ११४)। गीतारहस्य(परि. १.५२६) में दिखलाया गया है कि "इन्द्रियाणि पराययाहु० इत्यादि ४२ वा श्लोक कठोपनिषद् का है और उपनिषद् के अन्य चार पाँच श्लोक भी गीता में लिये गये हैं। क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ-विचार का यह तात्पर्य है कि बाह्य पदार्थों के संस्कार प्रहण करना इन्द्रियों का काम है, मन का काम इनकी व्यवस्था करना है, और फिर धुद्धि इनको अलग अलग छाँटती है, एवं आत्मा इन सब से परे है तथा सब से भिन्न है। इस विषय का विस्तारपूर्वक विचार गीतारहस्य के छठे प्रकरण के अन्त (पृ. १३-१४८) में किया गया है। कर्म-विपाक के ऐसे ऐसे गूढ़ प्रश्नों का विचार, गीतारहस्य के दसवें प्रकरण (पृ. २७७ -२८५) में किया गया है कि, अपनी इच्छा न रहने पर भी मनुष्य काम-क्रोध मादि प्रवृत्ति-धर्मों के कारण कोई काम करने में क्यों कर प्रवृत्त हो जाता है। और मात्मस्वतन्त्रता के कारण इन्द्रिय-निग्रहरूप साधन के द्वारा इससे छुटकारा पाने का मार्ग कैसे मिल जाता है । गीता के छठे अध्याय में विचार किया गया है कि इन्द्रिय-निग्रह कैसे करना चाहिये ।] इस प्रकार श्रीभगवान् के गाये हुए अर्थात् कहे हुए उपनिषद् में, ब्रह्मविद्यान्त- गत योग अर्थात् कर्मयोग-शास्त्रविषयक, श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद में कर्म. योग नामक तीसरा अध्याय समाप्त हुआ। चौथा अध्याय । [कर्म किसी से छूटते नहीं है, इसलिये निष्काम बुद्धि हो जाने पर भी कर्म करना ही चाहिये, कर्म के मानी ही यज्ञ-याग आदि कर्म है; पर मीमांसकों के ये कर्म स्वर्गप्रद हैं अतएव एक प्रकार से बन्धक हैं, इस कारण इन्हें प्रासक्ति छोड़ करके करना चाहिये ज्ञान से स्वार्थबुद्धि छूट जावे, तो भी कर्म छुटते नहीं हैं अत- एव ज्ञाता को भी निष्काम कर्म करना ही चाहिये लोकसंग्रह के लिए यह भाव- श्यक है-इत्यादि प्रकार से अब तक कर्मयोग का जो विवेचन किया गया, उसी को इस अध्याय में दृढ़ किया है । कहीं यह शक्षा न हो, कि आयुष्य बिताने मार्ग अर्थात् निष्ठा अर्जुन को युद्ध में प्रवृत्त करने के लिये नई बतलाई गई हैएतदर्थ इस मार्ग की प्राचीन गुरु-परम्परा पहले बतलाते हैं-]