पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/७

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गीतारहस्य का पुनर्मुद्रण ।

हिन्दी-गीतारहस्य की पहली प्रावृत्ति में जितनी प्रतियाँ छपी थीं वे सब एक ही दो मास में समाप्त हो गई और मांग वरावर जारी रही । इसलिये भव यह दूसरा पुनर्मुद्रण पंक्तिशः और पृष्ठशः प्रकाशित किया जाता है। मूल अन्य का भी पुनर्मुद्रण बहुत शोब हुमा; इस कारण जब उसमें ही कोई विशेष फेरफार नहीं हो सका तय अनुवाद में कैसे हो सकता था। अतएव इसके भूल विचार जैसे के से ही इस बार भी छपे हैं। हाँ, अनुवाद सम्बन्धी जो कोई छोटी-मोटी त्रुटिया पहली प्रावृचि में रह गई थीं उनके ठीक कर देने का कार्य मेरे छोटे वधु, चित्रमयजगत्- सम्पादक पं० लक्ष्मीधर वाजपेयी ने किया है । भाषा इत्यादि के विशेष सुधार का प्रयत्न दूसरी आवृत्ति के समय किया जायगा।

परिशिष्ट प्रकरण में ७४५ श्लोक की गीता के विषय में जो उल्लेख है वह गीता अब मद्रास में प्रकाशित हुई है। उस पर से देखते हुए, इस विषय में ग्रन्थकार ने पहले जो अनुमान किया है. वही ठीक निश्चित होता है । यह गीता शुद्ध-सनातन धर्म-सन्मदाय की है और उसमें १८ की जगह २६ अध्याय हैं; और लौकक्रम मी मिन्न तथा अधिकांश में विसंगत है। यह २६ अध्यायों की गीता असली नहीं है। यह यात उसकी रचना से ही स्पष्ट जानी जाती है । गीतारहत्य की दूसरी आवृत्ति में प्रन्यकार इस विषय में अपने विचार प्रदर्शित करनेवाले हैं।

《श्रीरामदासी मठ, रायपुर (सी. पी.),

ज्येष्ठ वद्य ५, शुक्रवार संवत् १९७४ वि.》

अनुवादक