पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/६४८

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गीता, अनुवाद और टिप्पणी - १ अध्याय । अस्माकं तु विशिष्टा ये तानिबोध द्विजोत्तम । नायका मम सैन्यस्य संज्ञार्थ तान्ब्रवीमि ते ॥७॥ भवान्भीष्मश्च कर्णश्च कृपश्च समितिजयः। अश्वत्थामा विकर्णश्च सोमदत्तिस्तथैव च ॥८॥ अन्ये च बहवः शूरा मदर्थं त्यक्तजीविताः । नानाशस्त्रप्रहरणाः सर्वे युद्धविशारदाः॥९॥ अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम् । पर्याप्त विदमतेषां वलं भीमाभिरक्षितम् ॥ १०॥ रथी थे, उनका वर्णन उद्योगपर्व (१६४ से १७१ तक) के आठ अध्यायों में किया गया है। यहाँ बतला दिया है कि सृष्टफेनु शिशुपाल का बेटा था । इसी प्रकार, पुरुजित कुन्तिभोज, ये दो भिन्न भिन्न पुरुषों के नाम नहीं हैं । जिस कुन्तिभोज राजा को कुन्ती गोद दी गई थी, पुरुजित उसका औरस पुत्र था, और कुन्तिभोज उसके कुल का नाम है एवं यह वर्णन पाया जाता है, कि वह धर्म, भीष्म, और अर्जुन का मामा या (मभा. उ. १७१.२)। युधामन्यु और उत्तमौजा,दोनों पाञ्चाल्य थे, और चेकितान एक यादव या । युधामन्यु और उत्तमौजा ये दोनों अर्जुन के चरनक थे । शैव्य शिघि देश का राजा था।] (७) द्विजश्रेष्ठ ! अय इमारी ओर, सेना के जो मुख्य मुख्य नायक हैं उनके नाम भी में भापको सुनाता हूँ ध्यान दे कर सुनिये । (5) आप और भीष्म कर्ण और रणजीत कृप, अश्वत्थामा और विकर्ण (दुर्योधन के सौ भाइयों में से एक), तथा सोमदत्त का पुत्र (भूरिश्वा), (६) एवं इनके सिवा बहुतेरे अन्यान्य शूर मेरे लिये प्राण देने को तैयार है, और सभी नाना प्रकार के शख चलाने में निपुण तथा युद्ध में प्रवाणा हैं। (१०) इस प्रकार हमारी यह सेना, जिसकी रक्षा स्वयं भीष्म कर रहे हैं, अपर्याप्त अर्थात् अपरिमित या अमर्यादित है किन्तु उन (पाण्डवों) की वहसेना जिसकी रक्षा भीम कर रहा है, पर्यात अर्थात् परिमित या मयादित है। [इस श्लोक में पर्याप्त ' और 'अपर्यास ' शब्दों के अर्थ के विषय में मत' भेद है। पर्याप्त ' का सामान्य अर्थ 'यस' या 'काफी' होता है इसलिये कुछ लोग यह अर्थ बतलाते हैं कि " पाण्डवों की सेना काफी है और हमारी काफी नहीं है," परन्तु यह अर्थ ठीक नहीं है। पहले उद्योगपर्व में पृतराष्ट्र से अपनी सेना का वर्णन करते समय उक्त मुख्य मुख्य सेनापतियों के नाम बतला कर, दुर्योधन ने कहा है कि " मेरी सेना बड़ी और गुणवान है, इसलिये जीत मेरी ही होंगी" (3. ५४.६०-७०)। इसी प्रकार आगे चल कर भीष्मपर्व में, जिस समय द्रोणाचार्य के पास दुर्योधन फिरसे सेना का वर्णन कर रहा था, उस समय भी, गीता के उपर्युक्त श्लोकों के समान ही श्लोक उसने अपने मुंह से ज्यों के त्यों कहे हैं (भीष्म. ५१. ४-६)। और, तीसरी बात यह है कि सब सैनिकों को गी.