गीतारहस्य अथवा कर्मयोग-परिशिष्ट । धर्म का ज्ञान होना ही सर्वथा असंभव था, तो बात दूसरी थी। परंतु इतिहास से सिद होता है कि सिकंदर के समय से आगे-और विशेष कर अशोक के तो समय में ही (अर्थात् ईसा से लगभग २५० वर्ष पहले )-पूर्व की भोर मित्र के एलेक्जें- लिया तथा यूनान तक बौद् यतियों की पहुंच हो चुकी थी। अशोक के एक शिक्षा- देख में यह बात लिखी है कि, यहूदी लोगों के, तथा भासपास के देशों के, यूनानी राजा एण्टिमोकस से उसने सन्धि की थी । इसी प्रकार वाइवल (मैथ्यू. २.७) में वर्णन है कि नव ईसा पैदा हुआ तब, पूर्व की ओर के कुछ ज्ञानी पुरुष जेरू- सहम गये थे । इसाई लोग कहते हैं कि ये ज्ञानी पुरुष मगी अर्थात् ईरानी धर्म के धागे-हिंदुस्थानी नहीं । परन्तु चाई जो कहा जाय, अर्थ तो दोनों का एक ही है। क्योंकि, इतिहास से यह बात स्पष्टतया विदित होती है कि चौद्ध धर्म का प्रसार, इस समय से पहले ही, काश्मीर और काबुल में हो गया था; एवं वह पूर्व की और ईरान तथा तुर्मिस्थान तक भी पहुंच चुका था। इसके सिवा प्लूटार्क ने साफ साफ लिखा है, कि ईसा के समय में हिंदुस्थान का एक यति लालसमुद्र के किनारे, और एलेक्जेन्द्रिया के भासपास के प्रदेशों में प्रतिवर्ष माया करता था। तात्पर्य, इस विषय में भव कोई शंका नहीं रह गई है कि ईसा से दो-तीन सौ वर्ष पहले ही यहूदियों के देश में बौद्ध यतियों का प्रवेश होने लगा था; और जब यह संबंध सिद्ध हो गया, तब यह वात सहज ही निप्पन्न हो जाती है कि यहूदी लोगों में संन्यास-प्रधान एसी पन्य का और फिर आगे चल कर संन्यास-युक्त मक्ति प्रधान ईसाई धर्म का प्रादुर्भाव होने के लिये बौद्ध धर्म ही विशेष कारण हुआ होगा । अंग्रेज़ ग्रंथकार लिली ने भी यही अनुमान किया है, और इसकी पुष्टि में फ्रेंच पंदित मुमिल दुर्च और रोस्नी के इसी प्रकार के मतों का अपने ग्रन्थों में हवाला दिया है। एवं जर्मन देश में लिपज़िक के तत्वज्ञानशास्त्राध्यापक प्रोफेसर सेडन ने इस विषय के अपने ग्रंथ में उक्त मत ही का प्रतिपादन किया है । जर्मन प्रोफेसर See Plutarch's Jorals-Theosophical Essays, translated by C. X. King (George Bell & Sons) pp. 96, 97, 971 TT UT (२९.३९) में यवनों अर्थात यूनानियों के बलसंडा (योन-नालन्दा ) नामक शहर वा व्हेन्त्र है । उन्में यह लिखा है कि ईसा की सदी मे कुछ वर्ष पहले जब सिंहल द्वीप में एक मंदिर बन रहा था, तब वहाँ बहुत से बाद यति डलवार्थ पधारे थे। महावंश के अंग्रेजी अनु- बादक करसंवा शब्द से मिस देश के एलेक्डिया शहरी नहीं लेने वे इस शब्द से यहाँ उस स्दा नामक गांव की ही विविक्षित बतलाते हैं कि जिले सिकंदर ने काबुल में दसाया था; परन्तु यह ठीक नहीं है । कोंकि इस छोटे से गाँव को फिती ने भी यवनों का नगर न कहा होता । इसके जिला उपर बतलाये हुए मशोक के शिलालेख ही ने, यवों के राज्यों में, पैड भिक्षुओं के भेजे जाने का स्पष्ट च्छेन्दु है । † See Lillie's Buddha and Buddhism, pp. 158 fj.
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