पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/६३०

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भाग ७ -गीता और ईसाइयों की बाइबल । यह समता पश्चिमी लोगों को देख पड़ी, तय कुछ ईसाई पंडित कहने लगे कि बौद्ध धर्मवालों ने इन तन्त्रों को नेस्टोरियन ' नामक ईसाई पंच से लिया होगा कि जो एशियाखंड में प्रचलित था। परन्तु यह पात ही संभव नहीं है। क्योंकि, नेस्टार पंप का प्रयतक ही ईसा से लगभग सवा चार सौ वर्ष के पश्चात् उत्पन्न हुमा था; और भय अशोक के शिलालेखों से भली भाँति सिद्ध हो चुका है कि ईसा के लगभग पांच सौ वर्ष पहले-पौर नेटार से तो लगभग नौ सौ वर्ष पहले- बुद का जन्म हो गया था। प्रशोक के समय, अर्थात् सन् ईसवी से निदान ढाई सो पर्ष पहले, बौद्ध धर्म हिंदुस्पान में और मासपास के देशों में तेजी से फैला दुमा था; एवं युद्धचरिम प्रादि अन्य भी इस समय तैयार हो चुके थे । इस प्रकार जय यौद्धधर्म की प्राचीनता निर्विवाद है तब ईसाई तथा चौदधर्म में देख पड़ने- पाले साम्य के विषय में दो ही पक्ष रह जाते हैं। (१) वह साम्य स्वतन्त्र रोति से दोनों ओर उत्ता मा हो, अथवा (२) इन साचों को ईसा ने या उसके शिष्यों ने बौद्धधर्म से लिया हो । इस पर प्रोफेसर लिहसडेविड्स का मत है कि बुद्ध और ईसा की परिस्पिति एक ही सी होने के कारण दोनों ओर यह सारश्य प्राप ही भाप स्वतन्त्र रीति से हमा। परन्तु घोड़ा सा विचार करने पर यह यात सय के ध्यान में भा जायेगी कि यह कल्पना समाधानकारक नहीं है। क्योंकि, जब कोई नई यात किसी भी स्थान पर स्वतन्त्र रीति से उत्पन होती है, तब उसका उदय सदैव कमशः हुमा करता है और इसलिये उसकी उमति का क्रम भी यतनाया जा सकता है। उदाहरण लीजिये, सिलसिलेवार ठीक तौर पर यह बतलाया जा सकता है, कि वैदिक कर्मकायट से ज्ञानकाण्ड, और ज्ञानकायउ अर्थात् उपनि- पदों ही से आगे चल कर भक्ति, पातंजलयोग अथवा अन्त में बौद्धधर्म कैसे उत्पन्न एमा। परन्तु यज्ञमय यहूदी धर्म में संन्यास-प्रधान एसी या ईसाई धर्म का उदय उक्त प्रकार से हुमा नहीं है। यह एकदम उत्पन्न हो गया है, और उपर यतला ही चुके हैं कि प्राचीन ईसाई पंडित भी यह मानते थे कि इस रीति से उसके एकदम उदय हो जाने में यहुदी धर्म के अतिरिक्त कोई अन्य बाहरी कारण निमित्त रहा होगा। इसके सिवा, यौद्ध तथा ईसाई धर्म में जो समता देख पड़ती है वह इतनी विलक्षण और पूर्ण है कि वैसी समता का स्वतंत्र रीति से उत्पर होना संभव भी नहीं है । यदि यह बात सिद्ध हो गई होती कि, उस समय यहूदी लोगों को बौद्ध एक स्वतंत्र ग्रंथ लिखा है । इसके सिवा Buddha and Buddhism नामक ग्रन्थ के अंतिम जार भागों में उन्होंने अपने मन का संक्षिप्त निरूपण स्पष्ट रूप से किया है। हमने परिशिष्ट के इस भाग में जो विवेचन किया है, उसका आधार विशेषतया यही दूसरा ग्रंथ है। Buddha and Buddhism #4 The World, s Epoch-maker's Series में सम् १९०० ईसवी में प्रसिप हुआ है।रतके दसवें भाग में वौद्ध और ईसाई धर्म के कोई ५० समान उदाहरणों का दिग्दर्शन कराया है। Sca Buddhist Sultas, S. B. E. Sories, Vol. XI. p. 163.