भाग ७-गीता और ईसाइयों की वाइबल । ५८६ पड़ता है कि ईसा भी इसी पंथ का अनुयायी था और इसी पंथ के संन्यास-धर्म का उसने भधिक प्रचार किया है। यदि ईसा के संन्यास-प्रधान भक्ति-मार्ग की पर- सरा इस प्रकार एसी पंथ की परम्परा से मिला दी जावे तो भी ऐतिहासिक दृष्टि से इस मात की कुछ न कुछ सयुक्तिक उपपत्ति यतलाना आवश्यक है, कि मूल कर्म- मय यहूदी धर्म से संन्यास प्रधान एसी पंथ का उदय कैसे हो गया। इस पर कुछ मोग कहते है कि ईसा एसीन पंधी नहीं था। अब जो इस बात को सच मान लें, तो.यह प्रश्न नहीं टाला जा सकता कि नई बाइबल में जिस संन्यास-प्रधान धर्म का र्णन किया गया है, उसका मूल क्या है, अथवा कर्म-प्रधान यहूदी धर्म में उसका प्रादुर्भाव एकदम कैसे हो गया? इसमें भेद केवल इतना होता है कि एसीन पंथ की तत्पत्तिवाले प्रश्न के बदले इस प्रश्न को हल करना पड़ता है क्योंकि अब समाजशास्त्र का यह मामूली सिद्धान्त निश्चित हो गया है, कि "कोई भी बात किसी स्थान में एक- दम उत्पन्न नहीं हो जाती, उसकी वृद्धि धीरे धीरे तथा बहुत दिन पहले से हुआ फरती है और जहाँ पर इस प्रकार की बाढ़ देख नहीं पड़ती, वहाँ पर वह बात प्रायः पराये देशों या पराये लोगों से ली हुई होती है। कुछ यह नहीं है कि, प्राचीन इसाई ग्रंथकारों के ध्यान में यह अड़चन पाई ही न हो। परन्तु यूरोपियन लोगों को बौद्ध धर्म का ज्ञान होने के पहले, अथांत अठारहवीं सदी तक, शोधक ईसाई विद्वानों का यह मत था, कि यूनानी तथा यहूदी लोगों का पारस्परिक निकट- सम्बन्ध हो जाने पर यूनानियों के-विशेषतः पाइथागोरस के तत्वज्ञान की बदौलत कर्ममय यहूदी धर्म में एसी लोगों के संन्यासमार्ग का प्रादुभाव हुमा होगा । किन्तु अर्वाचीन शोधों से यह सिद्धान्त सत्य नहीं माना जा सकता। इससे सिद्ध होता है कि यज्ञमय यहूदी धर्म ही में एकाएकी संन्यास-प्रधान या ईसाई धर्म की उत्पत्ति हो जाना स्वभावतः सम्भव नहीं था, और उसके लिये यहूदी धर्म से बाहर का कोई न कोई अन्य कारण निमित्त हो चुका है-यह कल्पना नई नहीं है, किन्तु ईसा की अठारहवीं सदी से पहले के ईसाई पंडितों को भी मान्य हो चुकी थी। कोलबुक साहब ने कहा है कि पाइथागोरस के तत्वज्ञान के साथ बौद्ध धर्म के तत्वज्ञान की कहीं अधिक समता है अतएव यदि उपर्युक्त सिद्धान्त सच मान लिया जाय तो भी कहा जा सकेगा कि एसी पंथ का जनकत्व परम्परा से हिन्दुस्थान को ही मिलता है। परन्तु इतनी आनाकानी करने की भी कोई आवश्य- कता नहीं है। बौद्ध ग्रंथों के साथ नई बाइबल की तुलना करने पर स्पष्ट हो देख पड़ता है, किएसीया ईसाई धर्म की, पाइथागोरियन मंडलियों से जितनी समता है, उससे कहीं अधिक और विलक्षण समता केवल पुसी धर्म को ही नहीं किन्तु ईसा के चरित्र और ईसा के उपदेश की बुद्ध के धर्म से है। जिस प्रकार ईसा को श्रम में फंसाने का प्रयत्न शैतान ने किया था और जिस प्रकार सिद्धावस्था प्राप्त होने के समय उसने ४० दिन उपवास किया था, उसी प्रकार बुद्ध चरित्र में भी यह वर्णन
- See Colebrooke's llisi:ellaneous Essays, Vol. I. pp,399, 400.