पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/६२६

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भाग ७ गीता और ईसाइयों की वाइवल । कोई आवश्यकता ही नहीं है । तथापि कुछ बड़े बड़े अंग्रेजी ग्रंथों में अभी तक इसी असत्यं मत का उल्लेख देख पड़ता है, इसलिये यहाँ पर उस अर्वाचीन खोज के परिणाम का, संक्षेप में, दिगदर्शन करा देना आवश्यक प्रतीत होता है कि जो इस विषय में निप्पन हुआ है । पहले यह ध्यान में रखना चाहिये कि जब कोई दो अंघों के सिद्धान्त एक से होते हैं, तब केवल इन सिद्धान्तों की समानता ही के भरोसे यह निश्चय नहीं किया जा सकता कि अमुक ग्रंथ पहले रचा गया और अमुक पीछे । क्योंकि यहाँ पर ये दोनों बातें सम्भव हैं, कि (१) इन दोनों ग्रंथों में से पहले ग्रंथ के विचार दूसरे ग्रंथ से लिये गये होंगे, अथवा (२) दूसरे भ्रंथ के विचार पहले से । प्रतएव पहले जब दोनों ग्रंथों के काल का स्वतन्त्र रीति से निश्चय कर लिया जाय तय फिर, विचार-सादृश्य से यह निर्णय करना चाहिये कि प्रमुक ग्रंथकार ने, अमुक ग्रंथ से, अमुक विचार लिये हैं। इसके सिवा, दो मित भिन देशों के, दो ग्रंथकारों को, एक ही से विचारों का एक ही समय में अथवा कभी भागे-पीछे भी स्वतन्त्र रीति से सूझ पड़ना, कोई बिलकुल अशक्य वात नहीं है। इसलिये उन दोनों ग्रंथों की समानता को जाँचते समय यह विचार भी करना पड़ता है कि वे स्वतन्त्र रीति से आविर्भूत होने के योग्य हैं या नहीं; और जिन दो देशों में ये ग्रंथ निर्मित हुए हों उनमें, उस समय आवागमन हो कर एक देश के विचारों का दूसरे देश में पहुँचना सम्भव था या नहीं । इस प्रकार चारों ओर से विचार करने पर देख पड़ता है कि ईसाई-धर्म से किसी भी यात का गीता में लिया जाना सम्भव ही नहीं था, बल्कि गीता के तत्वों के समान जो कुछ ताव ईसाइयों की बाइबल में पाये जाते हैं, उन तत्वों को ईसा ने अथवा उसके शिष्यों ने बहुत करके बौद्धधर्म से-अर्थात् पर्याय से गीता या पैदिकधर्म ही सेवाइबल में ले लिया होगा और अब इस बात को कुछ पश्चिमी पंडित लोग सष्टरूप से कहने मी लग गये हैं। इस प्रकार तराजू का फिरा हुआ पलड़ा देख कर ईसा के कहर भक्तों को माश्चर्य होगा और यदि उनके मन का मुकाव इस बात को स्वीकृत न करने की और हो जाय तो कोई अाश्चर्य नहीं है। परन्तु ऐसे लोगों से हमें इतना ही कहना है कि यह प्रश्न धार्मिक नहीं-ऐतिहासिक है, इसनिय इतिहास की साका- लिक पद्धति के अनुसार हाल में उपलब्ध हुई बातों पर शान्तिपूर्वक विचार करना आवश्यक है। फिर इससे निकलनेवाले अनुमानों को सभी लोग-और विशेषतः थे, कि जिन्होंने यह विचार-सादृश्य का प्रश्न उपस्थित किया है-मानन्द-पूर्वक तथा पक्षपात-रहित बुद्धि से प्रहण करें, यही न्याय्य तथा युक्तिसंगत है। नई बाइबल का ईसाई धर्म, यहूदी वाइयल अर्थात् प्राचीन वाहवल में प्रतिपादित प्राचीन यहूदी धर्म का सुधारा हुआ रूपांतर है । यहूदी भाषा में ईश्वर को इलोहा' (अरबी ' इलाह') कहते हैं । परन्तु मोजेस ने जो नियम बना दिये हैं, उनके अनुसार यहूदीधर्म के मुख्य उपास्य देवता की विशेष संज्ञा 'जिहोवा है। पश्चिमी पंडितों ने ही अब निश्चय किया है कि यह 'जिहोवा' शब्द पसल ?