पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/६२४

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भाग-गीता और ईसाइयों की बाइबल । ५८५ इन अन्यों को मुखाम रट ढालने की चाल थी, इसलिये महेन्द्र के समय से उनमें कुछ भी फेरफार न किया गया होगा, तो भी यह कैसे कहा जा सकता है कि बुद्ध के निर्वाण के पश्चात् ये अन्य जब पहले पहल तैयार किये गये तव, अथवा आगे महेन्द्र या अशोक-कान तक, तत्कालीन प्रचलित वैदिक ग्रन्थों से इनमें कुछ भी नहीं लिया गया? प्रतएव यदि महाभारत युद्ध के पश्चात् का हो, तो भी अन्य प्रमाणों से उसका, सिकंदर बादशाह से पहले का, अर्थात् सन् ३२५ ईसवी से पहले का होना सिद्ध है। इसलिये मनुस्मृति के श्लोकों के समान महाभारत के श्लोकों का भी उन पुस्तकों में पाया जाना सम्भव है कि जिनको महेन्द्र सिंहनद्वीप में ले गया था। सारांश, युद्ध की मृत्यु के पश्चात् उसके धर्म का प्रसार होते देख कर शीघ्र ही प्राचीन वैदिक गाथामा तपा कथाओं का महाभारत में एकत्रित संग्रह किया गया है। उसके जो श्लोक बौद्ध ग्रन्थों में शब्दशः पाये जाते हैं उनको बौद्ध ग्रन्थकारों ने महा- भारत से ही लिया है, न कि स्वयं महाभारतकार ने यौन्द्र ग्रन्थों से । परन्तु यदि मान लिया जाय कि, बौद्ध प्रत्यकारों ने इन श्लोकों को महाभारत से नहीं लिया है बल्कि उन पुराने वैदिक ग्रन्यों से लिया होगा कि जो महाभारत के भी आधार हैं, परन्तु वर्तमान समय में उपलब्ध नहीं हैं और इस कारण महाभारत के काल का निर्णय उपर्युक्त श्लोक-समानता से पूरा नहीं होता, तथापि नीचे लिखी हुई चार पातों से इतना तो निस्सन्देह सिद्ध हो जाता है कि यौद्धधर्म में महायानपन्थ का प्रादुर्भाव होने से पहले केवल भागततधर्म ही प्रचलित न था, बल्कि उस समय भगवद्वीता भी सर्वमान्य हो चुकी थी, और इसी गीता के आधार पर महायान पन्य निकला है, एवं श्रीकृष्णा-प्रणीत गीता के तत्व बौवधर्म से नहीं लिये गये हैं वे चार थातें इस प्रकार हैं:-(१) केवल अनात्म-वादी तथा संन्यास-प्रधान मूल बुद्धधर्म ही से आगे चले कर क्रमशः स्वाभाविक रीति पर भक्ति प्रधान तथा प्रवृत्ति प्रधान तत्वों का निकलना सम्भव नहीं है, (२)महायानपन्य की उत्पत्ति के विषय में स्वयं बौद्ध ग्रन्थकारों ने, श्रीकृष्ण के नाम का स्पष्टतया निर्देश किया है, (३) गीता के भक्ति-प्रधान तथा प्रवृत्ति प्रधान तत्वों की महायान पन्थ के मतों से अर्थतः तथा शब्दशः समानता है, और (४) बौद्धधर्म के साथ ही साथ तत्कालीन प्रचलित अन्यान्य जैन तथा वैदिक पन्यों में प्रवृत्तिप्रधान भकि-मार्ग का प्रचार न था। उपयुक्त प्रमाणों से, वर्तमान गीता का जो काल निति हुआ है, वह इससे पूर्ण- तया मिलता जुलता है। भाग ७-गीता और ईसाइयों की वाइवल । उपर बतलाई हुई बातों से निश्चित हो गया कि हिन्दुस्थान में भक्ति प्रधान भागवतधर्म का उदय ईसा से लगभग १४ सौ वर्ष पहले हो चुका था, और ईसा के पहले प्रादुर्भूतसंन्यास प्रधान मूल बौद्धधर्म में प्रवृत्ति प्रधान भाकितंत्र का प्रवेश, बौद गी.र. ७४