पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/६२१

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५८२ गीतारहस्य अथवा कर्मयोग-परिशिष्ट । विचार बुद्ध के मूल उपदेश से विरुद्ध हैं। परन्तु फिर यहीं नया मत स्वभाव से अधिकाधिक लोकप्रिय होने लगा और बुद्ध के मूल उपदेश के अनुसार आचरण करनेवाले को हीनयान ' (हलका मार्ग) तथा इस नये पंथ को 'महायान' (बड़ा मार्ग) नाम प्राप्त होगया। चीन, तिब्बत और जापान आदि देशों में आज फल जो वौद्धधर्म प्रचलित है, वह महायान पन्थ का है, और बुद्ध के निर्वाण के पश्चात् महायानपन्थी मिनुसंघ के दीर्घोद्योग के कारण ही बौद्धधर्म का इतनी शीघ्रता से फैलाव हो गया । डाक्टर केर्न की राय है कि बौद्धधर्म में इस सुधार की उत्पत्ति शालिवाहन शक के लगभग तीन सौ वर्ष पहले हुई होगी ।। क्योंकि बौद्ध अन्यों में इसका उल्लेख है कि शक राजा कनिष्क के शासनकाल में बौद्ध भिक्षुओं की जो एक महापरिषद् हुई थी, उसमें महायान पन्ध के भिक्षु उपस्थित थे। इस महायान पन्थ के 'अमितायुसुत्त' नामक प्रधान सूत्र ग्रन्थ का वह अनुवाद अभी उपलब्ध है, जो कि चीनी भाषा में सन् १४८ ईसवी के लगभग किया गया था। परन्तु हमारे मतानुसार यह काल इससे भी प्राचीन होना चाहिये । क्योंकि, सन् ईसवी से लगभग २३० वर्ष पहले प्रसिद्ध किये गये, अशोक के शिलालेखों में संन्यास प्रधान निरीधर वौद्धधर्म का विशेष रीति से कोई उल्लेख नहीं मिलता; उनमें सर्वत्र प्राणिमान पर दया करनेवाले प्रवृत्ति प्रधान बौद्धधर्म ही का उपदेश किया गया है। तब यह स्पष्ट है कि उसके पहले ही बौद्धधर्म को महायान पन्य के प्रवृत्ति-

  • हीनयान और महायान पंथों का भेद बतलाते हुए डाक्टर केन ने कहा है कि:-

“Not the Arhat, who has shaken off all human feeling, but the generous, self-sacrificing, active Bodhisattva is the ideal of the Mahayanists, and this attractive side of the creed has, more perhaps than anything else, contributed to their wide conquests, whereas S. Buddhism has not been able to make converts except where the soil had been prepared by Hinduism and Mahaya- nism. '-Janual of Indian Buddhism. 69 Southern Buddhism अर्थातू हीनयान है। महायान पन्थ में भक्ति मामीसमावेश हो चुका था।"Mahayanism lays a great stress on devotion, in this respect as in many others harmonising with the current of feeling in India which led to the growing importance of Bhakti.” Toid p. 124. † See Dr. Kern's Janual of Indian Buddhism, pp. 6, 69 and 119 मिलिंद (मिनडर नामी युनानी राना ) सन् ईसवी से लगभग १४० या १५० वर्ष पहले, हिंदुस्थान के वायव्य की ओर, बेक्ट्रिया देश में राज्य करता था। मिलिंदप्रश्न में इस बात का उल्लेख है कि नागसेन ने इसे वौद्धधर्म की दीक्षा दी थी। बौद्धधर्म फैलाने के ऐसे काम महायान पंथ के लोग ही किया करते थे, इसलिये स्पष्ट ही है कि तब महायान पंथ प्रादुर्भूत हो चुका था। 1