पृष्ठ:गीतारहस्य अथवा कर्मयोगशास्त्र.djvu/६११

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गीतारहस्य अयवा कर्मयोग-परिशिष्ट । हैं और प्रमाण में जो बौद्ध ग्रंयों के स्थल बतलाये गये हैं, उनका सिलसिला इसी माला के अनुवादों में मिलेगा। कुछ स्थानों पर पाली शब्दों तया वाक्यों के अच. तरण भूल पाली ग्रन्यों से ही उद्धत किये गये हैं। अब यह बात निर्विवाद सिद्ध हो चुकी है, कि नैनधर्म के समान बौदधर्म भी अपने वैदिकधम रूप पिता का ही पुत्र है कि जो अपनी संपत्ति का हिस्सा के कर किसी कारण से विभक्त हो गया है, अर्थात् वह कोई पराया नहीं है-किनु इसके पहले यहाँ पर जो ब्राह्मणधर्म या, टसी की यहीं उपनी हुई यह एक शाखा है। लंका में महावंश या दीपवंस श्रादि प्राचीन पाली भाषा के अन्य हैं, उनमें बुद्ध के पश्चाद्वर्ती राजाची तया बाँद आचार्यों की परंपरा का जो वर्णन है, उसका हिसाब लंगा कर देखने से ज्ञात होता है, किगौतम बुद्ध ने अप्सी वर्ष की आयु पा कर ईसवी सन् से ५४३ वर्ष पहले अपना शरीर छोड़ा। परन्तु इसमें कुछ बातें असंबद्ध है, इसलिये प्रोफेसर मैक्समूलर ने इस गणना पर सूक्ष्म विचार करके बुद्ध का यथार्य निर्वाण-काल इसवी सन से ४७३ वर्ष पहले बतलाया है, और ढाक्टर बूलर भी अशोक के शिलालेखा से इसी काल का सिद्ध होना प्रमाणित करते हैं। तथापि प्रोफेसर निहाईविड्स और केन के समान कुछ खोज करनेवाले इस काम को उक्त काल से ६५तया १०० वर्ष और मी भागे की ओर दृटालाना चाहते हैं। प्रोफे- सर गायगर ने हाल ही में इन सब मतों की जाँच करके, बुद्ध का ययाय निवारण- काल इसवी सन से ४३ वर्ष पहले माना है। इनमें से कोई भी काल क्यों न स्वीकार कर लिया जाय, यह निर्विवाद है, कि बुद्ध का जन्म होने के पहले ही वैदिकधर्म पूर्ण अवस्था में पहुंच चुका था, और न केवल पनिषद् ही किन्तु धर्म- सूत्रों के समान अन्य भी उसके पहले ही तैयार हो चुके थे। क्योंकि, पाली नापा के प्राचीन बौद्ध धर्मग्रन्या ही में लिखा है कि," चारों वेद, वेदांग, व्याकरण, ज्योतिष, इतिहास और निघंटु" आदि विषयों में प्रवीण सत्वशील गृहस्थ ब्राह्मणों, तथा जटिल तपस्वियों से गौतम बुद्ध ने वाद करके उनको अपने धर्म की दक्षिा दी (सुत्तनिपातों में सेलच के सेल का वर्णन तया बव्युगाथा ३०-४५ देखो)। क आदि उपनिपदों में (क. १.१% मुंड .. २. १०) तथा उन्हीं को लक्ष्य करके गीता (२. ४०-४५, ६२०.२१) में जिस प्रकार यज्ञ-याग आदि श्रोत कमों की गौणत का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार तथा कई अंशों में उन्हीं शुन्दों के द्वारा तेवित्रमुत्तों (विद्यसूत्रों) में बुद्ध ने भी अपने मतानुसार ' यज्ञ- पुननिर्वागज्ञान विषयक वन प्रो० मेक्समूल ने अपने धम्नपद के अंग्रेजी अनुवाद की प्रस्तावना में (S. B. E. VOL.X. Intro. pp. XXXr-xir) जिया है और उसकी परीक्षा टॉ-गायार ने, सन १९१२ में प्रकाशित अपने महावंश के अनुवाद की STEFT, (The Mahavamsa by Dr. Geiger,Pali Text Society Intro. p. xxiis).